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प्राकृत भारती कुलटा है । प्रातःकाल पत्नी के समक्ष पुत्र को कहा-"वत्स ! तुम्हारी पत्नी कुलटा है, जो आज मध्यरात्रि में निकलकर कहीं पर गयी थी। इसलिए इसको घर में रखना उचित नहीं है !"
क्योंकि
गाथा ६-अत्यधिक प्रेम के वशीभूत, उन्मार्ग में गमन करने वाली, खण्डित गुण से युक्त और कलुषित महिला दोनों ही कुलों को
नदी की तरह विभाजित कर देती है। [६] इसलिए इसे पितृघर छोड़ आता हूँ। पुत्र ने कहा-“हे तात् ! जो
योग्य हो वह करो।" बहू से कहा- "हे भद्रे ! 'शीलवती को शीघ्र भेजो' इस प्रकार का तुम्हारे पिता का सन्देश आया है। इसलिए चलो मैं स्वयं तुम्हें छोड़ आता हूँ।" वह शीलवती भी 'रात्रि में निकलने के कारण मझे कुलटा की शंका से युक्त श्वसुर है' इसे भी देगी, यह विचार कर रथ में सेठ के साथ बैठकर चलने को तैयार हो गयी। चलते हुए सेठ नदी के पास पहुँचा । सेठ ने कहा- "बहु ! जूते उतार कर नदी में उतरो।" उस बहू के द्वारा नहीं उतारे गये । तब सेठ ने सोचा 'अविनीत' है।
आगे पहली खेती से विस्तारित अत्यन्त फले हुए मूंग के खेत को देखा । सेठ ने कहा-"अहो ! मंग का खेत अच्छा फला । खेत का स्वामी सर्व सम्पन्न है।" उस बह ने कहा-“यदि नहीं भोगा जाय तो।" सेठ ने सोचा-"बिना भोगा हुआ देखते हुए भी खाया गया कहती है । अतः यह असंबद्ध प्रलाप करने वाली है।” आगे एक समृद्ध और प्रसन्नचित्त मनुष्यों के समूह से युक्त नगर में गये। सेठ ने कहा-"अहो ! इसकी रमणीयता ।" बहू ने कहा-“यदि यह बसति रहित नहीं हो।" सेठ ने विचार किया-"यह अपलाप करने
वाली है।" [७] आगे चलने पर सेठ ने अनेक प्रहार से क्षत-विक्षत तथा हाथ में
हथियार लिए व्यक्ति को देखा। सेठ ने सोचा-"क्या कोई शूरवीर नहीं है, जो शस्त्रों से पीटा गया है।" लेकिन यह पुत्रवधू विपरीत बोलने वाली है। आगे जाने पर बड़ के पेड़ के नीचे सेठ विश्राम हेतु बैठा । किन्तु बह बड़ के पेड़ की छाया को छोड़कर दूर बैठी। सेठ ने कहा-"छाया में ठो।" वह वहाँ नहीं बैठी। सेठ ने विचार किया-'सब विपरीत ही कर रही है।'
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