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प्राकृत भारती ने नगर के समृद्ध व्यक्तियों को कुटुम्ब सहित मद्यपान के लिए बुलाया । मद्य का असर होने पर वे मूर्ख की तरह बोलने लगे। उनमें नाचता हुआ चाणक्य उठकर गाने लगा--
गाथा ७-मेरे पास दो गैरिक वस्त्र, त्रिदण्ड तथा स्वर्णकुण्डिका है। राजा भी मेरे वश में है। इसलिए मेरे लिए यहाँ ढोलक
बजाओ। [८] इसको सुनकर दूसरा इसे सहन नहीं करता हुआ, पहले प्रकट नहीं
की गयी अपनी ऋद्धि को प्रकट करता हुआ, नाचने के लिए तैयार हुआ क्योंकि
गाथा ८-क्रोध से आतुर, व्यसन को प्राप्त, राग में रंगे हुए, मदिरा में डूबे हुए व्यक्ति अपने भावों को प्रकट करने वाले होते हैं। उसके द्वारा कहा गया
गाथा ९-मदोन्मत्त हाथी के शिशओं के एक हजार योजन चलने पर उसके प्रत्येक पग-पग पर हजार-हजार (मौहरें दे सकता हूँ), इसलिए मेरे लिए भी यहाँ ढोलक बजाओ। दूसरे ने कहा
गाथा १०–आढ़क प्रमाण तिलों को बोने से जितने तिल बनते हैं, उन प्रत्येक तिल पर एक लाख मोहरे दे सकता हूँ; अतः मेरे लिए भी यहाँ ढोलक बजाओ। दूसरे ने कहा
गाथा ११ – नवीन वर्षा ऋतु में शीघ्रता से गतिवाली नदी के वेग को मैं एक दिन में निकाले हुए नवनीत की पाल से बाँध सकता हूँ।
इसलिए मेरे लिए भी ढोलक बजाओ। अन्य ने कहा
गाथा १२-अभी-अभी उत्पन्न उत्तम अश्वों के कन्धवाल को एकत्र करूँ, तो उनके केशों से आकाश को छा सकता हूँ इसलिए मेरे नाम का भी ढोलक बजाओ। अन्य कहता है
गाथा १३–मेरे पास दो रत्न हैं। शालिप्रसूतिका और गर्द
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