________________
अगडदत्त कथा
१८९
४२. “काम-वासना की पहली अवस्था चिन्ता उत्पन्न करती है, दूसरी
अवस्था संगमसुख की अभिलाषा करती है और उसकी तीसरी अवस्था
में दीर्घ और उष्ण निश्वास चलने लगती है।" ४३. “कामावस्था की चौथी अवस्था में ज्वर उत्पन्न होता है, पाँचवीं __ अवस्था में शरीर जलने लगता है और छठी अवस्था में कामीजनों के
लिए भोजन रुचिकर नहीं लगता।" ४४. “कामावस्था की सातवीं अवस्था में यह जीव मूच्छित होने लगता
है, आठवीं अवस्था में उसे उन्माद होने लगता है। जब यह जीव नवमी अवस्था में पहुँचता है, तो उसके प्राणों के बचने में भी सन्देह
होने लगता है।" ४५. “जब कामी दसवीं अवस्था में पहुँचता है तो निश्चय ही वह जीवन
त्याग कर देता है। अत मेरे विरह में यह मदनमंजरी अपने प्राणों का
त्याग कर देगी, इसमें संशय ही क्या है ?" ४६. विचार करने में कुशल उस राजकुमार ने अपने हृदय में विचार कर,
स्नेह से युक्त मधुर वाणी में उस बाला से इस प्रकार कहा४७. "हे सुन्दरी, सुन्दर आचरण वाले, एवं विपुल कीर्ति वाले सुन्दर नाम
के राजा के प्रथम पुत्र (बड़े लड़के) "अगडदत्त" इस नाम से
मुझे जानो।" ४८. “कलाओं के आचार्य के समीप कलाओं को ग्रहण करने के लिए ही
मैं यहाँ आया हूँ। जिस दिन मैं इन कलाओं को विशेष रूप से सीख
लँगा उसी दिन तुम्हें भी साथ लेकर जाऊँगा।" ४९. कामदेव के बाण के प्रसार से जर्जरित शरीर वाली उस मगाक्षी
मदनमंजरी को राजकुमार अगडदत्त ने जिस किसी प्रकार समझाकर
आश्वासन दिया। ५०. वह राजकुमार अगडदत्त उस मदनमंजरी के गुण और रूप में आसक्त
चित्त होकर तथा उसके साथ रहने का विचार करता हुआ अपने
निवास स्थान पर आया। ५१. अन्य किसी एक दिन वह राजकुमार अगडदत्त घोड़े पर सवार होकर ___ मार्ग में जा रहा था कि उसी समय नगर में कोलाहल मच गया । वह
सोचने लगा कि
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org