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'अगडदत्त कथा
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६३. इसके अनन्तर उस हाथी की मनोहर क्रीड़ाओं को समस्त नगर के ___लोगों तथा अन्तःपुर की रानियों के साथ राजा ने देखा। ६४-६५. हाथी के कन्धे पर बैठे हुए देवों के समान सुन्दर उस राजकुमार
को देखकर राजा ने अपने भृत्यों से पूछा-"सूर्य के समान तेजस्वी, चन्द्रमा के समान सौम्य, समस्त कलाओं और आगमों में कुशल, शास्त्रार्थ में निपुण, शूरवीर और सुन्दर यह गुणनिधि बालक
कौन है ?" ६६. इसके अनन्तर नौकरों में से एक ने उत्तर दिया-“हे नरनाथ,
कलाओं के आचार्य के मन्दिरों में मैंने इसे कलाओं के सीखने में
परिश्रम करते हुए देखा है।" ६७. इसके अनन्तर राजा ने हर्षित होकर कलाओं के आचार्य से पूछा
"श्रेष्ठ हाथियों की शिक्षा में अतिकुशल यह श्रेष्ठ पुरुष कौन है ?" ६८. तब कलाओं के आचार्य ने अभय-दान माँगकर अनेक लोगों से युक्त __राजा को कुमार अगडदत्त का वृत्तान्त विस्तारपूर्वक कह सुनाया । ६९. उसे सुनकर अपने हृदय में अत्यन्त सन्तोष को प्राप्त उस राजा ने
कुमार अगडदत्त को अपने पास लाने के लिए एक प्रतिहारी को
भेजा। ७०. उस प्रतिहारी ने हाथी के कन्धे पर बैठे हुए उस कुमार अगडदत्त से
इस प्रकार कहा--"हे कुमार, नरनाथ आपको बुला रहे है । आप
दरबार में चलें।" ७१. इसके अनन्तर हाथी को खम्भे में बाँधकर, राजा की आज्ञा से आशं
कित होता हुआ वह कुमार अगड़दत्त नरनाथ के पास पहुँचा । ७२. अत्यन्त विनय के साथ कुमार अगडदत्त राजा को पृथ्वी पर झक कर
तथा घुटने टेक कर प्रणाम भी नहीं कर पाया था कि राजा ने उसे
अपने हृदय से लगा लिया। ७३. पान, आसन, सम्मान, दान एवं पूजादि से अत्यधिक सम्मानित
होकर कुमार अगडदत्त प्रसन्न हृदय से राजा के पास बैठ गया । इसके अनन्तर राजा ने सोचा, “यह तो निश्चय ही कोई उत्तम पुरुष
है। क्योंकि७४. "उत्तम पुरुषों का मूल विनय है, व्यवसाय का मूल लक्ष्मी है, सुखों
का मूल धर्म है और विनाश का मूल घमण्ड है।"
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