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प्राकृत भारती
तृतीय अभिलेख १. देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा ने ऐसा कहा-अभिषेक के बारह
वर्ष (पश्चात्) मेरे द्वारा यह आज्ञा दी गयी। २. मेरे राज्य में सर्वत्र युक्त, रज्जुक और प्रादेशिक पाँच-पाँच वर्ष पर
दौरे पर जाय। ३. इस कार्य के लिए, इस धर्मानुशिष्टि के लिए, चाहे (यथा) अन्य कार्य
के लिए। ४. माता-पिता की सेवा (करना) अच्छा (साधु) है। मित्र, परिचित,
जाति, ब्राह्मण और श्रमण को दान देना अच्छा है। ५. प्राणियों की अहिंसा अच्छी है। अल्प-व्ययता और अल्प-संग्रह
अच्छा है। ६. परिषदें युक्तों को हेतु (कारण) और अक्षरशः अर्थ (व्यंजन) के साथ (इन नियमों की) गणना करने के लिए आज्ञा देंगी।
चतुर्थ अभिलेख १. बहत सैकड़ों वर्षों का अन्तर बीत चुका । प्राणियों का वध, जीव
धारियों। २. के प्रति विशेष हिंसा, जाति के लोगों के साथ अनुचित व्यवहार
(और) ब्राह्मण तथा श्रमणों के साथ अनुचित व्यवहार बढ़ता ही गया है । किन्तु आज देवानांप्रिय प्रियदर्शी राजा के धर्मान्तरण से
भेरी-घोष । ३. (युद्ध-वाद्य) धर्मघोष (धर्म-प्रचार) हो गया है-विमान-दर्शन, ४. हस्तिदर्शन, अग्नि-स्कन्ध तथा अन्य दिव्य प्रदर्शनों को जनता को
दिखाकर (इसी प्रकार) बहुत सैकड़ों वर्षों में जैसा । ५. पहले कभी नहीं हुआ, वैसा आज देवानांप्रिय प्रियदर्शी राजा के धर्म
अनुशासन में६. प्राणियों का अवध, जीवधारियों के प्रति अहिंसा, जातियों के प्रति
उचित व्यवहार, ब्राह्मण-श्रमणों के प्रति उचित व्यवहार, माता-पिता
की सेवा और स्थविरों श्रेष्ठजनों की सेवा बढ़ी है। ७. इस प्रकार आज बहुविध धर्माचरण की वृद्धि हुई है। देवानांप्रिय । ८. प्रियदर्शी राजा इस धर्माचरण को और बढ़ायेंगे (ही) देवानांप्रिय
प्रियदर्शी राजा के पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र,
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