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आठ कथानक
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गाथा ४-नेत्रों से किसको नहीं देखा जाता है, किसके वचन सम्मान को प्राप्त नहीं करते हैं किन्तु जिससे हृदय का आनन्द पुन:पुनः उत्पन्न होता हो, वह मनुष्य विरल ही होता है।
इसलिये मेरे अनुरोध पर आपके द्वारा इस घर में नित्य ही आया जाय । मूलदेव ने कहा-“हे गुणों से शोभित होने वाली ! दूसरे देश में रहने वाले हम जैसे निर्धनों के लिये प्रतिबन्ध शोभा नहीं देता है,
और न ही स्थिरता होती है । प्रायः सबके कार्यवश ही स्नेह उत्पन्न होता है ।" और कहा गया है
श्लोक ५-"नष्ट हुए फल वाले वृक्ष को पक्षी, शुष्क तालाब को सारस, मुरझाये हुए फूलों को भौंरें और जलते हुए वन को हिरण छोड़ देते हैं।" द्रव्य रहित पुरुष को गणिका और गद्दीरहित राजा को सेवक छोड़ देते हैं। सभी व्यक्ति कार्यवश चाहते हैं। कौन किसको प्यारा है ?"
तब देवदत्ता द्वारा कहा गया-“सद्पुरुषों के लिये स्वदेश या परदेश का कारण नहीं होता।" और कहा गया है
गाथा ६–“समुद्र से अलग (उत्पन्न) होने पर भी चन्द्रमा द्वारा महादेव के सिर में निवास किया जाता है। गुणी लोग, जहाँ जाते हैं, वहीं सिर के द्वारा जाने पूजे जाते हैं।"
-और धन भी सार रहित है, अतः विद्वान लोग उसमें अधिक मान नहीं करते । क्योंकि गुणों में ही अनुराग होता है।" और क्या कहा जाय
गाथा ७–वाणी हजार लोगों को प्रभावित करती है और निर्मल स्नेह लाख लोगों को, लेकिन सज्जन मनुष्य का सद्भाव करोड़ों में विशिष्ट होता है।
अतः इस प्रार्थना को सर्वथा स्वीकार करो। मूलदेव ने भी स्वीकार कर लिया। उनमें स्नेह भरा सम्बन्ध हो गया। [७] एक बार राजा के समक्ष देवदत्ता ने नृत्य प्रस्तुत किया, मूलदेव के
द्वारा वहाँ मृदंग बजाया गया। इससे देवदत्ता को राजा ने सन्तुष्ट होकर वरदान दिया। उसने धरोहर के रूप में वर सुरक्षित रखा । मूलदेव द्यूत में अत्यन्त आसक्त था, (निरन्तर हार के कारण) उसके वस्त्र भी नहीं रहे। तब उस (देवदत्ता) ने अनुनयपूर्वक प्रिय
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