Book Title: Prakrit Bharti
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 242
________________ २३३ शुद्धि की । फिर उसने सोचा- अब मैं विदेश जाऊँगा, वहाँ जाकर इनके अपकार के बदले का कुछ भी उपाय करूँगा ।' तब वह वेन्नातट की ओर रवाना हुआ। ग्राम-नगर आदि के मध्य से जाता हुआ बारह योजन- प्रमाण एक अटवी (जंगल) के मुख पर पहुँचा और वहाँ उसने सोचा- 'यदि कोई जाता हुआ दूसरा व्यक्ति बात करने वाला सहायक मिल जाय तो यह अटवी सुखपूर्वक पार हो जायेगी। तभी थोड़ी देर बाद विशिष्ट आकृति वाला पाथेय की ढक्क नामक एक ब्राह्मण वहाँ आया । मूलदेव ने ब्राह्मण ! कितनी दूर जाओगे ?' उसने कहा - ' इसी पार वीर - निधान नामक गाँव है, वहाँ जाऊँगा । और तुम कहाँ जाओगे ? मूलदेव ने कहा- बेनातट । ब्राह्मण ने कहा- तो आओ । हम चलें ।' थैली का स्वामी आठ कथानक [१२] तब दोनों चल दिये । जाते हुए मध्याह्न समय में उन्होंने एक सरोवर देखा । ढक्क ने कहा- 'अरे ! एक क्षण यहाँ विश्राम करेंगे ।' वे सरोवर के पास गये, हाथ-पैर धोये । मूलदेव सरोवर की पाल पर स्थित पेड़ की छाया में गया। ढक्क ने पाथेय की थैली खोलो | प्याली में सत्तु लिया । उसको जल से मिलाकर खाने लगा । मूलदेव ने सोचा- ब्राह्मण जाति भोजन प्रधान होती है, इसलिये यह मुझे बाद में देगा । वह ब्राह्मण भी खाकर और थैली बाँधकर चल दिया । निश्चित ही दूसरी बार देगा, ऐसा सोचकर मृलदेव साथ में चलने लगा । वहाँ भी ब्राह्मण ने उसी प्रकार खाया, लेकिन उसको नहीं दिया । 'कल देगा' इस आशा से इच्छा करता हुआ मूलदेव चलने लगा । जाते हुए रात्रि हो गयी । तब वे रास्ते से कुछ दूर होकर वटवृक्ष के नीचे सो गये । प्रातः काल में पुनः रवाना हुए। मध्याह्न में वे उसी प्रकार विश्राम के लिये रूके । ढक्क ने उसी प्रकार खाया किन्तु इसको नहीं दिया । जब तीसरे दिन मूलदेव के द्वारा सोचा गया कि अटवी को प्रायः पार कर लिया गया है, अतः आज मुझे यह अवश्य ही देगा, किन्तु तब भी उसने नहीं दिया । फिर उनके द्वारा अटवी पार कर ली गयी । दोनों के मार्ग अलग-अलग हो गये। तब भट्ट ने कहा'अरे ! तुम्हारा यह मार्ग है और मेरा यह, इसलिये तुम इससे 'जाओ ।' मूलदेव ने कहा- 'अरे भट्ट ! मैं तुम्हारे साथ यहाँ तक आया हूँ, मेरा नाम मूलदेव है । यदि मुझसे कभी भी कुछ भी कार्य हो तो • बेनातट में आना । 'तुम्हारा नाम क्या है ?" ढक्क ने कहा - 'लोगों 1 Jain Educationa International उससे पूछा - 'है अटवी के उस For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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