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श्लोक १ - जो विचित्र विट कोटि में रहते हैं, मद्य-मांस का भक्षण करने वाले निकृष्ट हैं, मीठा बोलते हैं किन्तु मन से दुष्ट हैं वे लोग गणिकाओं का सेवन करते हैं, विशिष्ट जन सेवन नहीं करते ।
आठ कथानक
श्लोक २ – जो अग्नि की शिखा की तरह दूसरे को जलाने वाली, मदिरा की तरह चित्त को मोहित करने वाली, घुरी की तरह शरीर को भेदन करने वाली गणिका है वह धूर्त की तरह घृणा करने योग्य है ।
[३] इसलिये वहाँ मेरी जाने की इच्छा नहीं है । उस दासी के द्वारा भी अनेक उक्तियों व बहानों से उसके चित्त की आराधना कर और उसके हाथ को अत्यन्त प्रेम से ग्रहण कर उसे घर पर ले जाया गया । जाते हुए उस मूलदेव ने कला - कुशलता और विद्या प्रयोग से उस दासी का मनोरंजन कर उसे अपने वश में कर लिया । विस्मय के कारण भ्रान्तचित्त से मूलदेव भवन में प्रविष्ठ हुआ । देवदत्ता के द्वारा भी अपूर्व लावण्य धारी वामन रूप वाले उस मूलदेव को देखा गया और विस्मित होते हुए उसे आसन दिलाया गया । वह भी बैठा, उसको पान दिया गया । माधवी ने अपना रूप दिखाया और वृतान्त कहा । मधुर पांडित्यपूर्ण उक्तियों से वार्तालाप प्रारम्भ हुआ और अच्छी तरह उसे विस्मित कर दिया गया और उस ( मूलदेव) के द्वारा गणिका के हृदय को चेष्टा विशेष से वश में कर लिया गया। कहा भी है
गाथा ३ – “अनुनय की कुशलता, परिहास की कोमलता और दुर्लभ चतुर वाणी रसिक व्यक्तियों के कर्म हैं । उन्हें वशीकरण औषधि की क्या आवश्यकता ?
[४] इसी बीच वहाँ पर एक वीणा वादक आया । उसने वीणा बजाई, देवदत्ता प्रसन्न हुई और कहा -ओ, वीणा वादक ! तुम धन्य हो, तुम्हारी कला श्रेष्ठता से सुशोभित है ।" मूलदेव ने कहा—“अहो ! उज्जैनी के लोग अति-निपुण हैं । सुन्दर, असुन्दर को विशेषतः जानते हैं । "देवदत्ता ने कहा – “इस (वीणा) में क्या कमी है।" उसने कहा"वाँस भी अशुद्ध है और वीणा का ताँत भी गर्भ युक्त है" देवदत्ता ने कहा - " कैसे जाना गया ? मैं देखता हूँ ।" उसको वीणा दी गई उसके द्वारा बाँस से पत्थर और वीणा (ताँत) से बाल बाहर निकाला गया । - उसको ठीक कर मूलदेव बजाने लगा तो देवदत्ता व अन्य परिजन
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