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१३. आठ कथानक
१. पाटलिपुत्र का राजकुमार मूलदेव [१] उज्जैनी नगरी थी। उसमें समस्त कलाओं में कुशल, अनेक विज्ञानों में
निपुण, उदार-चित्त, किये हुए उपकार का आदर करने वाला, पराक्रम को प्राप्त, गुणानुरागी, प्रिय बोलने वाला, दक्ष, रूप, लावण्य और तरूणता सहित मूलदेव नामक राजपुत्र द्यूत-व्यसन में आसक्ति के कारण जनक द्वारा अपमानित होने पर पृथ्वी पर घूमता हुआ पाटलिपुत्र से वहाँ आया। वहाँ पर वह गुटिका के प्रयोग से अपने वेश को वामन आकार में परिवर्तित कर नगरजनों को विचित्र कथाओं, गंधर्व कलाओं और विविध कौतुकों से आश्चर्यचकित करता
हुआ प्रसिद्ध हो गया । [२] वहाँ रूप, लावण्य और विज्ञान से गर्वित देवदत्ता नामक प्रमुख
गणिका रहती थी। मूलदेव ने ऐसा सुना कि स्व-गवित होने के कारण वह गणिका किसी सामान्य पुरुष में अनुरक्त नहीं होती थी। तब कौतुक से उसको क्षोभित करने के लिये प्रातःकाल समीप में स्थित होकर मूलदेव ने समधुर आवाज में बहुत प्रकार से कंठ को साधकर अन्यान्य वर्गों के सहयोग से रमणीय संगीत प्रारम्भ किया । देवदत्ता ने वह संगीत सुना और सोचा-अहो ! अद्भुत वाणी है, अतः यह कोई दिव्य-पुरुष है, मनुष्यमात्र नहीं। उसने दासियों से उसकी खोज करवायी। खोजने पर वामन के रूप में मूलदेव को देखा गया। दासियों ने यथार्थ अवस्था कह सुनायी। देवदत्ता के द्वारा उसको बुलाने के लिये माधवी नामक कुबड़ी दासी को भेजा गया। उसने जाकर विनयपूर्वक कहा-“हे पराक्रमी । हमारी स्वामिनी देवदत्ता निवेदन करती है कि आप कृपा करें और हमारे घर पर पधारें।" तब उस निपुण ने कहा- "मुझे गणिकाओं के संसर्ग से कोई मतलब नहीं है । विशिष्ट जनों के लिए वेश्याओं का संसर्ग वर्जित है। और
कहा गया है कि" * अनुवाद-डॉ० प्रेम सुमन जैन, सुखाडिया विश्वविद्यालय, उदयपुर ।
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