Book Title: Prakrit Bharti
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 224
________________ ___२१५ २१५ कर्पूरमञ्जरी (प्रवेश करके) पारिपाश्विक-आज्ञा हो, महाशय । सूत्रधार-क्या पुनः तुम लोग किसी नृत्य की तैयारी में हो ? पारिपाश्विक-सट्टक का नृत्य प्रस्तुत करता है। सूत्रधार-कौन इसके कवि हैं ? पारिपाश्विक-महाशय, बतलाइए तो "रजनीवल्लभशिखण्ड" किसे कहा जाता है और "रघुकुलचूडामणि" महेन्द्रपाल के कौन गुरु हैं ? (५) सूत्रधार-(विचारकर ) अच्छा तो प्रश्न के उत्तर में प्रश्न । (प्रकाश) राजशेखर। पारिपाश्विक-वे ही इसके कवि हैं। सूत्रधार-( कुछ याद करके ) काव्य के मर्मज्ञों ने कहा है-सट्टक उसे कहते हैं जो हूबहू नाटिका के अनुरूप हो। हाँ, इसमें केवल प्रवेशक और विष्कम्भक आदि नहीं होते हैं । (६) ( सोचकर ) अच्छा तो संस्कृत को छोड़कर प्राकृत में रचना करने में कवि क्यों प्रवृत्त हुआ ? पारिपाश्विक उस सर्वभाषाचतुर कवि ने कहा ही है कि अर्थविशेष तो वे ही रहते हैं। परिवर्तित होते हुए भी शब्द तो वे ही हैं। काव्य तो उक्तिविशेष को कहते हैं-भाषा चाहे जो भी हो (७) सूत्रधार-तो क्या अपने विषय में उन्होंने कुछ नहीं कहा है ? पारिपाश्विक सुनिए, तत्कालीन कवियों में मृगांकलेखा के कथाकार अपराजित ने उनका वर्णन किया है। जैसे-बालकवि, कविराज और फिर निर्भरराज महेन्द्रपाल का उपाध्याय इस क्रम से जिसने महत्व को प्राप्त किया, वे ही श्री राजशेखर इसके कवि हैं, चन्द्रमा के प्रतिस्पर्धी जिनके गुण तीनों लोकों को प्रकाशित करते हैं और निष्कलंक हैं। ( ८-९) सूत्रधार-तो किसकी आज्ञा से इसका अभिनय कर रहे हो। पारिपार्विश्क-राजशेखर कवि की गृहिणी चाह्वान कुल को विभूषित करवाना चाहती है। (१०) और भी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268