Book Title: Prakrit Bharti
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 226
________________ २१७ कर्पूरमञ्जरी प्रेम-क्रीड़ा करने वाली, कर्णाटक की रमणियों के चिकुरजाल को आलोड़ित करने वाली और कुन्तल देश की रमणियों को प्रेमियों के साथ स्नेहबंधन में बाँधने वाली मलयपर्वत के शिखर के ऊपर से बहने वाली सिंघल देश की ( दक्षिणी ) हवा आ रही है। (१४) (वहीं) दूसरा-कुंकुम-पंक से महाराष्ट्री के कपोल की आभा चम्पक में आ गई है । थोड़े मथे हुए दूध जैसे छोटे-छोटे फूलों से मल्लिका लद गई है। किंशक मूल में तो काला है और आगे इस पर भौंरा बैठा है—ऐसा लगता है मानों भौंरे इसे दोनों ओर से पी रहे हों। (१५) राजा-प्रिय विभ्रमलेखा ! क्या मैंने तुझे बधाई दी और क्या तुमने मुझे । बधाई तो दी हम दोनों को कंचनचन्द्र और रत्नचन्द्र वंदियों ने । अच्छा तो धृष्ट कामिनियों में कामोन्माद उत्पन्न करने वाले, मलयानिल के मिस चन्दन के पेड़ पर चढ़ी लताओं रूपी नर्तकियों को नचाने वाले, कोयलों के कण्ठों से अच्छी तरह से पंचम स्वर उत्पन्न कराने वाले, ऋद्ध कन्दर्प के कोदण्ड की तरह प्रचण्ड किन्तु वसुन्धरा-रूपी नायिका के स्नेहशील बंध वसंत-रूपी उत्सव को आँखें भरकर देखो। देवी-सचमुच ही मलयानिल का बहना शुरू हो चुका है। ____ लंका के द्वारों पर लटकती हुई तोरणमाला को आलोड़ित करनेवाली, अगस्त्य के आश्रम में चन्दन पर चढ़ी लताओं को धीरे-धीरे आन्दोलित करने वाली, कर्पूर की लताओं से वास लेकर, अशोक के वृक्षों को कम्पित करने वाली और नागलता को उद्दाम नृत्य कराने वाली ताम्रपर्णी की तरंगों को बरबस चूम-चमकर मधुमास की हवा बह रही है । ( १६) और भी, ___ "मान छोडो, उत्सूक दष्टियों को अपने प्रेमियों से मिलने दो, यह जवानी और यह स्तनों का उभार उस पाँच दिनों का कोयल की मीठी तान के बहाने कामदेव की यह आज्ञा वसंतो त्सव के क्रम में मानों लोक में प्रसारित की गई है। (१७) विदूषक-जो भी हो, तुम सबों में काले अक्षरों को जानने वाला एक मैं ही हूँ। मेरे ससुर दूसरों के घर पुस्तकादि ले जाया करते थे । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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