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वसुनन्दि श्रावकाचार
२०९ ८६. मांस खाने से दर्प बढ़ता है, दर्प से वह शराब पीने की इच्छा करता
है और इसी से वह जुआ भी खेलता है। इस प्रकार वह प्रायः ऊपर
वर्णन किये गये सभी दोषों को प्राप्त होता है। ८७. लौकिक शास्त्र में भी ऐसा वर्णन किया गया है कि गगनगामी अर्थात्
आकाश में चलने वाले ब्राह्मण भी मांस के खाने से पृथ्वी पर गिर पड़े । इसलिए मांस का उपयोग नहीं करना चाहिए।
चौर्य दोष-वर्णन १०१. पराये द्रव्य को हरने वाला, अर्थात् चोरी करने वाला मनुष्य इस लोक
और परलोक में असाता-बहुत, अर्थात् प्रचुर दुःखों से भरी हुई अनेकों
यातनाओं को पाता है और कभी भी सुख को नहीं देखता है । १०२. पराये धन को हर कर भय-भीत हुआ चोर थर-थर काँपता है और
अपने घर को छोड़कर संतप्त होता हुआ वह उत्पथ अर्थात् कुमार्ग
से इधर-उधर भागता फिरता है। १०३. क्या किसी ने मुझे देखा है, अथवा नहीं देखा है, इस प्रकार धक-धक् ___ करते हुए हृदय से कभी वह चोर लुकता-छिपता है, कभी कहीं
भागता है। १०४. चोर अपने माता-पिता, गुरु, मित्र, स्वामी और तपस्वी को भी कुछ
नहीं गिनता है, प्रत्युत् जो कुछ भी उनके पास होता है, उसे भी
बलात् या छल से हर लेता है। १०५. चोर लज्जा, अभिमान, यश और शील के विनाश को, आत्मा के
विनाश को और परलोक के भय को नहीं गिनता हुआ चोरी करने
का साहस करता है। १०६. चोर को पराया द्रव्य हरते हुए देखकर आरक्षक (पहरेदार) आदिक
रस्सियों से बाँधकर, मोरबन्ध से अर्थात् कमर की ओर हाथ बाँधकर
पकड़ लेते हैं। १०७. और फिर उसे टिंटा अर्थात् जुआखाने या गलियों में घुमाते हैं। और
गधे की पीठ पर चढ़ाकर 'यह चोर है' ऐसा लोगों के बीच में घोषित
कर उसकी बदनामी करते हैं। १०८. और भी जो कोई मनुष्य दूसरे का धन हरता है, वह इस प्रकार के
फल को पाता है, ऐसा कहकर पुनः उसे तुरन्त नगर के बाहर ले जाते हैं। १४
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