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६. उत्तराध्ययन सूत्र
( क ) विनय सूत्र ( प्रथम अध्ययन ) १. (माता पितादि बाह्य एवं राग-द्वेष कषायादिक आभ्यन्तर) संयोग
से रहित, घरबारों के बन्धनों से मुक्त (भिक्षा से निर्वाह करने वाले) साधु का, विनय प्रकट करूगा (अतः सावधान होकर) अनुक्रम से,
मुझसे, सुनो। २. (गुरु ) आज्ञा को स्वीकार करने वाला, गरुजनों के समीप रहने वाला,
इंगित और आकार से (गुरु के भाव को) समझने वाला, वह ( साधु )
विनीत कहलाता है। ३. (गुरु की) आज्ञा को न मानने वाला, गुरु के समीप नहीं रहने वाला,
(उनके) प्रतिकूल कार्य करने वाला, तत्त्वज्ञान से रहित (अविवेकी)
वह ( साधु ) अविनीत कहलाता है। ४. जैसे सड़े कानों वाली कुत्ती, सभी स्थानों से निकाली जाती है, उसी
प्रकार दुष्ट स्वभाव वाला, गुरुजनों के विरुद्ध आचरण करने वाला
वाचाल साधु सभी स्थानों से निकाला जाता है। ५. (जैसे ) सूअर चावल के कुण्डे को छोड़कर विष्ठा खाता है, इसी प्रकार
मृग ( के समान अज्ञानी साधु भी) सदाचार को त्याग कर दुःशील
(दुष्ट आचार ) में रत रहता है। ६. ( सड़े कानों वाली ) कुत्ती और सूअर के दृष्टान्तों को सुनकर अपना
(ऐहिक और पारलौकिक ) हित चाहने वाला व्यक्ति ( अपनी)
आत्मा को विनय में स्थापित करे। ७. इसलिए अविनय के दोषों को जानकर मोक्ष के अभिलाषी गुरु के लिए
पुत्र के समान प्रिय साधु को विनय की आराधना करनी चाहिए। जिससे सदाचार की प्राप्ति हो ( ऐसा विनीत साधु ) कहीं से भी
नहीं निकाला जाता है। ८. (साधु को चाहिए कि वह ) सदा अतिशय शान्त और वाचालता
रहित कम बोलने वाला हो (तथा) आचार्यादि के समीप मोक्ष अर्थ
के अनुवादक-डॉ० हुकमचन्द जैन, सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर ।
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