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प्राकृत भारती
१४. इस प्रकार भवन से निकलते हुए (और क्रमशः आगे बढ़ते हुए विवाह ___ मंडप के निकट पहुँचने पर) वह (अरिष्टनेमि कुमार) मृत्यु के भय से
भयभीत बने हुए बाड़ों में रोके हए दुःखित और पिंजरों में (पक्षियों को)
देखकर (विचार करने लगे) । १५. जीवन के अन्त को प्राप्त हुए मांस के लिए खाये जाने वाले (अर्थात्
मांस भोजी बरातियों के लिए मारे जाने वाले प्राणियों को) देखकर अतिशय प्रज्ञावान वह (अरिष्टनेमि कुमार) सारथि से इस प्रकार
पूछने लगे१६. 'ये (बिचारे) गरीब, सुख को चाहने वाले, सभी प्राणी किस लिए वाड़ों
में और पिंजरों में रोके हुए हैं ?' १७. इसके बाद (भगवान् अरिष्टनेमि के प्रश्न को सुनकर) सारथि कहने
लगा (कि हे भगवान्) इन सभी भद्र एवं निर्दोष प्राणियों को आपके विवाह में आये हुए बहुत से (मांस-भोजी मनुष्यों को) भोजन कराने
के लिए (यहाँ बन्द कर रखा है।) १८. बहुत से प्राणियों के विनाश वाले उस (सारथि) के वचन को सुनकर
जीवों के विषय में करुणा से युक्त होकर वे (महा प्रज्ञावान् भगवान्
नेमिनाथ) विचार करने लगे। १९. 'यदि मेरे कारण ये बहुत से जीव मारे जायेंगे तो यह कार्य मेरे लिए ___ कल्याणकारी नहीं होगा।' २०. महायशस्वी (भगवान नेमि) ने कुण्डलों की जोड़ी, कन्दोरा तथा
सभी आभूषण सारथि को प्रदान किये। २१. (मरते हुए) प्राणियों पर अनुकम्पा करके उन्हें बन्धन से मक्त करवा--
कर तथा सारथि को पुरस्कृत कर भगवान् नेमिनाथ द्वारका में लौट आये। तत्पश्चात् उन्होंने दीक्षा अंगीकार करने के लिये (मन में) विचार किया तब उनका निष्क्रमण (दीक्षा महोत्सव) करने के लिए यथोचित समय पर सभी प्रकार की ऋद्धि से युक्त और परिषद् सहित
लोकान्तिक आदि देव मनुष्य लोक में आये । २२. इसके बाद देव और मनुष्यों से घिरे हुए भगवान् देव निर्मित उत्तम
पालकी पर आरूढ़ होकर द्वारकापुरी से निकल कर रेवतक (पर्वत)
पर पधारे। २३. इसके पश्चात् (सहस्त्रभुवन नामक) उद्यान में पधारे और उत्तम
शिविका से नीचे उतरे तत्पश्चात् चित्रा नक्षत्र (के चन्द्रमा के साथ
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