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श्री कूर्मापुत्र चरित
१७७ १२. उन दोनों के सुन्दर रूप से कामदेव को जीतने वाला, गुणरूपी मणियों
का भंडार, अनेक लोगों के जीवन का आधार सुकुमार दुर्लभ नामक
राजकुमार पुत्र है। १३. वह राजकुमार अपने यौवन और राज्यमद से अन्य बहुत से कुमारों को
आकाशतल में गेंद की तरह उछालता (अपमानित करता) हुआ सदैव
क्रीड़ा करता है। १४. किसी एक दिन उस नगर के दुर्गिल नामक बगीचे में सुलोचन नामक
एक केवलज्ञानी सद्गुरू पधारे। १५. उस बगीचे में बहुसाल नामक वटवृक्ष के नीचे स्थित भवन में आवास
बनाये हुए एक भद्रमुखी नामक यक्षिणी सदैव निवास करती थी। १६. वह यक्षिणी संशय हरण करने वाले केवलज्ञानरूपी कमलासे युक्त
सुलोचन नामक उन सद्गुरू को भक्तिपूर्वक प्रणाम कर इस प्रकार
पूछती है१७. 'हे भगवन् ! पूर्वभव में मैं सुवेल वेलंधर नामक देव की प्राणप्रिय पत्नी
मानवती नामक मानवी थी। १८. आयु के क्षय होने पर मैं इस वन में भद्रमुखी नामक यक्षिणी हो गयी। किन्तु हे नाथ ! मेरा पति किस गति में उत्पन्न हुआ है, (कृपया) आदेश प्रदान करें।' तब सुलोचन नामक केवली मधुर वाणी में
कहते हैं१९. 'हे भद्रे ! सुनो, इसी नगर में तुम्हारा सुदुर्लभ पति द्रोण राजा के पुत्र __ के रूप में उत्पन्न हुआ है, जिसका नाम दुर्लभ है।' २०. यह सुनकर वह भद्रमुखी नामक यक्षिणी प्रसन्न हो गयी एवं मानवी
का रूप धारण कर वह कुमार (दुर्लभ) के समीप में पहुँच गयी। २१. बहुत से कुमारों को उछालने में तल्लीन उस दुर्लभ कुमार को देखकर
वह यक्षिणी हँसकर कहती है-"इस व्यर्थ के खेल खेलने से
क्या लाभ ?' २२. “यदि तुम्हारा मन विचित्र प्रकार के आश्चर्यों में दौड़ता हो तो तुम
मेरा अनुगमन करो।" इन वचनों को सुनकर वह कुमार२३. उसके वचनों के कौतूहल से आकर्षित मन वाला होता हुआ उस कन्या
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