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श्री कूर्मापुत्र चरित
१७९ ३५. तब उस देवी (यक्षिणी) ने अपनी शक्ति से अशभ पुद्गलों (द्रव्य) को
निकाल कर शुभ पुद्गलों का प्रक्षेपण उस राजकुमार के शरीर
में करके३६. पूर्व जन्म की पत्नी के रूप में, लज्जा को त्याग कर उसके साथ भोगों
को भोगा। इस प्रकार वे दोनों विषय सुखों का अनुभव करते हुए वहाँ
रहने लगे। ३७. और इधर पुत्र के वियोग से दुखी उस राजकुमार के माता-पिता
हमेशा सब जगह उसको खोजते रहते हैं, किन्तु उसका समाचार भी
प्राप्त नहीं होता है। ३८. देवताओं के द्वारा अपहृत वस्तु मनुष्यों के द्वारा कैसे खोजी जा सकती
है ? क्योंकि मनुष्य और देवताओं की शक्ति में बहुत अन्तर होता है । ३९. इसके बाद दुखी उन माता-पिता द्वारा उन केवली मुनि से पूछा
गया- "हे भगवन् ! कहिए, हमारा वह पुत्र कहाँ चला गया है ?" ४०. तब वे केवली कहते हैं- “सावधान मन से एवं कानों के द्वारा
सुनो-तुम्हारा वह पुत्र एक व्यन्तरी के द्वारा अपहृत कर लिया
गया है।" ४१. तब केवली के वचनों से अत्यन्त आश्चर्य से विस्मित हो गये वे कहते
हैं-"देवता अपवित्र मनुष्य का क्यों अपहरण करते हैं ?" क्योंकि
आगम में कहा है४२. मनुष्य लोक की गंध चार-पाँच सौ योजन ऊपर तक जाती है, उस
कारण देवता वहाँ नहीं आते हैं। ४३. जिनेन्द्र देव के पंचकल्याणकों में महाऋषियों के तप के प्रभाव से
और पूर्वजन्मों के स्नेह से ही देवता इधर आते हैं । ४४. तब केवली बतलाते हैं कि उस व्यन्तरी के पूर्वजन्म के स्नेह से ही
( तुम्हारा पुत्र वहाँ गया है)। तब वे माता-पिता निवेदन करते हैं कि
हे स्वामी ! कर्मों का फल अत्यन्त बलशाली है। ४५. हे भगवन् ! राजकुमार के साथ हमारा मिलन अब कब और कैसे
होगा ? तब मुनि ने कहा-'जब हम यहाँ फिर से आयेंगे तब होगा।
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