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प्राकृत भारती ९८. उसकी रूप सम्पन्न देवी के सदृश, विनय, विवेक, विचार आदि
प्रमुख गुणों के आभूषणों से अलंकृत कूर्मादेवी पटरानी थी। ९९. विषयसुख को भोगते हुए उनके दिन सुख से बीत रहे थे। जैसे सुरेन्द्र
एवं शचि के या कामदेव एवं रति के दिन बीतते हैं। १००. किसी एक दिन वह देवी अपने शयन गृह में सोकर जागृत हुई । वह
स्वप्न में आश्चर्ययुक्त देवभवन की रमणीयता को देखती है। १०१. प्रातःकाल हो जाने पर वह देवी शय्या से उठकर राजा के पास आई
और मधर शब्दों के साथ कहती है१०२. 'आज मैं स्वप्न में देवभवन को देखकर जागृत हुई हूँ। इस स्वप्न का
क्या विशेष फल होगा ?' १०३. यह सुनकर रोमांचित शरीर वाला एवं हर्ष से संतुष्ट राजा अपनी
बुद्धि के अनुसार इस प्रकार के वचनों को कहता है। १०४. 'हे देवि ! तुम नौ माह साढ़े सात दिन पूर्ण होने पर अनेक लक्षणों एवं ___गुणों से युक्त संसार के नेत्र के समान पुत्र को प्राप्त करोगी।' १०५. इस प्रकार के राजा के वचन को सुनकर संतुष्ट-हृदया एवं राजा के
अनुग्रह को प्राप्त वह रानी अपने गृह को गयी। १०६. उस विमान में कुमार का जीव देवता की आयु को पूराकर सुकृत
पुण्यों से कर्मा के गर्भ में तालाब में हंस की तरह अवतीर्ण हआ । १०७. जैसे रत्न से रत्न की खान और मुक्ता फल से सीपी सुशोभित होती है
वैसे ही उस गर्भ से वह सौभाग्य को प्राप्त हुई। १०८. गर्भ के अनुभाव से उसके शुभ पुण्योदय से सौभाग्य को सम्पन्न करने
वाला आगम के श्रवण का दोहल उत्पन्न हुआ। १०९. तब उस राजा ने छह दर्शन के ज्ञानियों को लोगों के द्वारा नगर के
मध्म कूर्मा को धर्म श्रवण करवाने के लिए बुलवाया। ११०. स्नान, नित्य कर्म, कौतूक मंगल आदि विधि कर्म को पूरा कर और
अपने शास्त्रों को लेकर वे धर्माचार्य राजभवन में पहुँचे। १११. राजा के द्वारा सम्मान प्रदान किए गए वे धर्माचार्य आशीष प्रदान
करके भद्र आसन पर बैठ कर अपने अपने धर्म को प्रकट करते हैं। ११२. किन्तु दूसरे मत/सम्प्रदाय वालों के हिंसा इत्यादि से युक्त धर्म को
सुनकर जिनधर्म में अनुरक्त वह कर्मा देवी अत्यन्त दुःख को प्राप्त
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