________________
प्राकृत भारती
५८. उसी समय बन्धुदत्त की माता ने बन्धुदत्त को बिलकुल एकान्त में
बुला कर कहा-'हे पुत्र! तुम विदेश जाकर ऐसा उपाय करना
जिससे भविष्यदत्त यहाँ वापस न लौट सके।' ५९. 'अन्यथा यही तुम्हारा जेठा भाई (भविष्यदत्त) पिता की मृत्यु के बाद
सभी सम्पतियों का स्वामी बन जायगा। यदि और नहीं, तो आधी
सम्पति तो वह बाँट ही लेगा। हे पुत्र! इसमें कोई सन्देह नहीं।' ६०. दूसरे दिन बन्धुदत्त सभी पुरुषों के साथ विदेश चल दिया और चलते
चलते वह शीघ्र हो विशाल समुद्र के किनारे जा पहुंचा। ६१. बन्धुदत्त एवं उसके साथियों को सम्मुख देखकर समुद्र मानों अपनी
उछलती हुई चंचल तरंगों के बहाने उनके स्वागत के लिये आगे बढ़ रहा था। अथवा उन आगन्तुकों को अपने घर में आया हुआ देख कर ही वह समुद्र तरंगों के बहाने अपनी प्रसन्नता व्यक्त कर
रहा था। ६२. अपनी समस्त व्यापारिक सामग्रियाँ जहाजों में भर कर वे मांगलिक
विधियों पूर्वक सुवर्णद्वीप के मार्ग की ओर बढ़े। ६३. मार्ग में चलते-चलते उनका समस्त ईंधन समाप्त हो गया। इसी बीच ___ मार्ग में चलते-चलते वे सभी मैनाकद्वीप जा पहुँचे । ६४. उस मैनाकद्वीप में उतरकर वे सभी लोग फलादि चनने लगे और
सभी लोग दर्शनीय स्थल देखते हुए इधर-उधर घूमने लगे। ६५. भविष्यदत्त को छोड़कर अन्य सभी लोग जब समुद्र तट पर लौट __ आए, तभी बन्धुदत्त ने अपने कर्मचारियों को वेगपूर्वक जहाज चला
देने का आदेश दिया। ६६. सभी साथियों ने बन्धुदत्त से कहा-'यहाँ भविष्यदत्त दिखाई नहीं
दे रहा है, उसे छोड़कर कैसे चलें? साथियों को ऐसा नहीं करना
चाहिए।' ६७. यह सुनकर बन्धुदत्त ने कहा-'एक के पीछे सभी क ा नुकसान नहीं
कर सकता । वह तट पर नहीं आया तो उसका गुण आप लोगों को
और उसका दोष मेरे माथे पर।' ६८. बन्धुदत्त के हृदय का भाव जानकर सभी साथी अपने मन में बड़े
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org