________________
रामशोभा कथा
१५९
[३२] इसके बाद, उस ब्राह्मणी ने अत्यन्त प्रसन्न होकर नवजात शिशु के साथ अपनी पुत्री ( विरूपा को ) पलंग पर सुला दिया । क्षणमात्र में ही उसकी परिचारिकाएँ वहाँ आई एवं अल्प सौन्दर्य वाली तथा कुछ-कुछ सदृश आकृति वाली अन्य किसी नारी को ( शिशु के साथ ) देखकर वे सभी भौंचक्की रह गयीं और बोली -- "हे स्वामिनी, आज आप कुछ विरूप जैसी क्यों दिखाई दे रही हैं ?"
[३३] उसने भी उत्तर कहा - "मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा, किन्तु मेरी देह स्वस्थावस्था में नहीं है ।" तब भयभीत हुई उन परिचारिकाओं ने उसकी माता ब्राह्मणी के सम्मुख अपनी चिन्ता व्यक्त की । कूट-कपट, नाटक, अभिनय आदि करने में निपुण ब्राह्मणी हाथों से छाती पीटती हुई रोने लगी । ( और कहने लगी ) - " हाय-हाय, दुष्ट दैव ने मुझे लूट लिया, जिससे मेरी यह बच्ची विरूप दिखने लगी । अब मैं राजा को कैसे मुँह दिखाऊँगी ?" यह सब देखकर परिचारिकाएँ भी राजा के भय से अत्यन्त विषादयुक्त होकर रहने लगीं ।
[३५] अर्थान्तर, उसी समय राजा द्वारा प्रेषित एक मन्त्री वहाँ आया और बोला - "देव ने आदेश दिया है कि देवी सहित कुमार को शीघ्र ही लाकर मुझसे मिलाओ ।” मन्त्री के द्वारा राजा का सन्देश सुनकर प्रस्थान की समस्त सामग्रियाँ तैयार कर ली गईं। उसी समय [कृत्रिम ] आरामशोभा से परिचारकों ने पूछा - "बगीचा कहाँ है ? तब उसने उत्तर में कहा - "आज नहीं चलेगा, मैंने उसे पानी पीने हेतु कुँए में ठहरा दिया है । अतः वह बाद में आवेगा ।"
[[३५] इसके बाद उसको साथ लेकर परिजन लोग पाटलिपुत्र पहुँचे । राजा को बधाई दी । राजा ने भी प्रमुदित मन से बाजारों को सजवा दिया, बधाईयाँ प्रारम्भ हुईं। स्वयं सम्मुख जाकर उसने देवी ( कृत्रिम आरामशोभा ) एवं कुमार को देखा । तभी प्रियतमा के विरूप सौंदर्य को देखकर आश्चर्यचकित होकर राजा ने पूछा - "अरे, तुम्हारे शरीर का सौन्दर्य विकृत क्यों दिखाई पड़ने लगा है, इसका क्या कारण है ? तब दासियों ने कहा -- "महाराज प्रसूति के समय दृष्टिदोष के कारण अथवा प्रसूति - रोग के कारण अथवा अन्य किसी कारण से रानी की देहकान्ति कैसे विरूप हो गई, यह हम लोग भी ठीक-ठीक नहीं - जान सके ।" तब पुत्रोत्पति के कारण अत्यन्त प्रसन्नचित्त होने पर भी
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org