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मुनिचन्द कथानक
१६५ [२] तब उसके बाद ही समर्पित किया पान, प्रसाधन और भेंट की सामग्री
और पुष्प अर्पित किया। कुमार के द्वारा आदरपूर्वक सब ग्रहण कर लिया गया। उसके लिए हार पारितोषिक के रूप में दिया और उसके द्वारा कहा गया-'कुमार ! राजकुमारी के आदेश से कुछ कहने के लिए है, इसलिए हे कुमार! एकान्त के लिए आदेश दीजिए।' तब कुमार के द्वारा आसपास देखा गया, नौकर-चाकर चले गये। तब उस स्त्री के द्वारा कहा गया-'हे राजकुमार ! राजकुमारी निवेदन करती है कि मेरे द्वारा तुम चाह लिए गए हो, किन्तु जब तक मेरी कोई प्रतिज्ञा पूरी न हो, तुम्हारे द्वारा मुझसे कुछ न कहा जायेगा। किन्तु मेरे द्वारा ग्रहण ही कर लिए गये हो, ऐसा मानिये।' मैंने कहा-'ऐसा
हो, इसमें क्या दोष है।' [३] प्रातःकाल में सब राजाओं के सामने लक्ष्मी के द्वारा विष्णु की तरह
मुझे उसके द्वारा वरमाला अर्पित की गई। दुखी हुए सभी राजा अपनेअपने स्थान को चले गये। तब सखियों ने उससे पूछा-'हे प्रिय सखी! इस राजकुमार में कौन से गुण तुम्हारे द्वारा देखे गये हैं जिससे इसे वरमाला समर्पित कर दी गई ? राजकुमारी ने कहा-'हे अत्यन्त भोली सखियो ! सुनो
गाथा २. देवताओं के समूह को पराजित करने वाले रूप को देखो, गुणों के समह से क्या लेना है । समस्त अंगों से सुगन्धित मरूवे के पौधे के लिए फूलों के समूह से क्या लेना?'
तब उत्साह के साथ विवाह सम्पन्न हुआ। वह अपने नगर को लायी गई। कनकमती के लिए ठहरने की व्यवस्था की गई। अपने आवास में वह ठहर गई। प्रातःकाल मैं उसके भवन को गया। मुझे आसन दिया गया और मैं बैठा। वह भी मेरे पास बैठी। उसके द्वारा प्रश्नोत्तर पढ़े गये, जो कि इस प्रकार थेगाथा ३. १. 'भय से युक्त भवन कैसा होता है ? कहो
२. स्त्रियों का नृत्य कैसा होता है और ३. कामवासना से युक्त व्यक्तियों का कैसा चित्र स्त्रियों को
चाहता है ?
मेरे द्वारा समझकर कहा गया-'साहिलांस' । १. स + अहि = ... साँप से युक्त भवन भय से युक्त होता है।
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