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चन्द कथानक
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आ गया । उसको वह पायल दे दी। उसे सिखा करके शीघ्र ही मैं उस मित्र के साथ कनकमती के भवन को गया । कनकमती ने हमारा सत्कार किया, आसन दिया और में उस पर बैठा और वह भी मेरे पास बैठ गई । हमारे बीच गोष्ठी आरम्भ हुई, चौथा पद जिसमें छिपा रहता था, ऐसा उसने एक पद पढ़ा
गाथा १०. 'तेज पवन से आहत ( पीड़ित ) कमल के पत्ते की तरह चंचल जीवन, प्रेम और प्राणियों का यौवन है और लक्ष्मी भी चंचल है ।' मैंने कहा - ' अतः धर्म और दया करो ।'
[१८] उसके बाद कनकमती ने घुँघरू प्राप्ति की आशा से मतिसागर को प्रेरित करके पूछा कि श्रीमान्, आपने ज्योतिष देख लिया । उसने कहा -- 'देख लिया । क्या तुम्हारी कुछ अन्य चीज भी गुम हुई है ?" उसने पूछा - 'वह क्या है ?' मतिसागर ने कहा- 'क्या तुम नहीं जानती हो ?' उसने कहा -- 'मैं जानती हूँ कि वह कैसे नष्ट हुई है । किन्तु उस स्थान को नहीं जानती हूँ । अतः तुम पता करो कि वह क्या है और कहाँ गुम हुई है ?' तब मैंने कहा कि मुझसे किसी दूसरे ने कहा कि 'दूर स्थान पर कनकमती के पैर से नूपुर गिरा, जिसने उसको प्राप्त किया था उसने मुझे बताया । न केवल बताया किन्तु उसके हाथ से मैंने प्राप्त भी कर लिया। तब कनकमती घुंघरू के वृत्तान्त से ही क्षुब्ध थी, किन्तु इस समय इस वृतान्त से वह अच्छी तरह व्याकुल हो गई और सोचने लगी कि -- 'अन्यत्र जाती हुई मैं जान ली गई हूँ। इसलिए नहीं जानती हूँ कि क्या हुआ ? यह कौनसी घटना है ? क्या यह सचमुच ही ज्योतिषी है अथवा यदि ज्योतिषी है तो जो नष्ट हुआ है उसी को जानता, मुझे और उस स्थान को कैसे जान गया तथा यहाँ रहते हुए ही उसको प्राप्त भी कर लिया । अतः इसमें कुछ कारण होना चाहिए और यह राजकुमार भी इन दिनों में शीघ्र ही मेरे घर पर आ जाता है तथा शेष निद्रा होने से यह लाल आँखों वाला भी है । अतः किसी प्रयोजन से यही मेरा पति वहाँ जाता है, यह मेरी आशंका है।' ऐसा सोचकर कनकमती ने कहा कि वह नूपुर कहाँ हैं, जो तुम लोगों ने ज्योतिष के बल से प्राप्त किया है ? तब मेरे मुँह को देखकर मतिसागर ने निकाल कर ( वह नूपुर ) समर्पित कर दिया । कनकमती ने ग्रहण कर लिया । कनकमती ने कहा--'आप लोगों ने इसे कहाँ प्राप्त किया है ?' मैंने पूछा कि यह कहाँ नष्ट हुआ था ? उसने उत्तर
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