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३. भविष्यदत्तकाव्य १. लोगों में सद्भाव उत्पन्न करने वाले, द्वीप-द्वीपान्तरों में सुखकारी एवं
देवों द्वारा वर्णित भविष्यदत्त के वृत्तान्त को कहता हूँ। २. श्रेष्ठ मुनि के समान संसार-विजेता, छोटी-छोटी नौकाओं से युक्त ___ समुद्र के समान, द्वीपों एवं समुद्रों के मध्य में स्थित अत्यन्त रमणीय
जम्बूद्वीप नाम का एक द्वीप है। ३. उसके दक्षिण दिशा की ओर मध्य खण्ड में पुण्यतीर्थ के समान तथा
प्रति दिवस शुभरस से युक्त एवं धर्म में लीन विशाल भरत क्षेत्र है। ४. उसमें देवों से युक्त स्वर्ग के समान, आर्य सत्यों से युक्त बुद्ध के
समान आकाश में व्याप्त चन्द्र के समान और अनेक पदों के धारी
चक्रवर्ती राजा के समान, और५. विविध रत्नों से युक्त समुद्र के समान, सुन्दर दिवस-समूह के समान,
प्रचुर मदयुक्त हाथी के समान अत्यन्त रमणीय कुरू नाम का एक
देश है। ६. उस कुरूदेश में हंस के समान सुन्दर, कोकिल के समान कण्ठवाले
जनों से युक्त और सूर्य के समान् महान् उदयवाला गजपुर
(हस्तिनापुर) नाम का एक नगर है। ७. उस गजपुर में कामदेव के समान सुन्दर, सुरगणों द्वारा सूशोभित
इन्द्र के समान, कौरव-वंश में उत्पन्न भूषाल नाम का राजा राज्य
करता था। ८. दुष्ट (कठोर) एवं अदुष्ट (नम्र) स्वभाव वाला, क्रोधादि से रहित मन
वाला तथा पृथ्वी का निरन्तर पालन करने वाला होने के कारण
उस राजा ने अपना नाम सार्थक कर दिया। ९. इस संसार में जो पृथ्वी का पालन करता है, वही 'भूपाल' कहलाता
है और जो (व्यसन के) अभ्यास में रत है, वह (राजा) तो चोर एवं
लुटेरा ही कहलाता है। १०. उसी श्रेष्ठ नगर (गजपुर) में धनपति नाम का एक वणिक् रहता
था, जो वैभव से सभी लोगों में उत्तम था।
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अनुवादक-डॉ० राजाराम जैन, भविष्यदत्तकाव्यम्, आरा, १९८५, पृ०. २२-३० ।
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