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प्राकृत भारती
११. भूपाल ने भी वैभव देकर उसका सम्मान किया। उससे वह इतना
समर्थ हो गया कि उसने सभी जनों के ऊपर 'श्रेष्ठी' पद प्राप्त कर
लिया। १२. वैभव से श्रेष्ठता, वैभव से ही स्वजन एवं परिजन, वैभव से ही भावों
की शुद्धता एवं वैभव ही संकटमोचन है । १३. धनपति के गृहद्वार पर गुणोजनों, मुनिजनों एवं धीर-वीर तथा
प्रतिष्ठित जाति एवं कुलों के व्यक्तियों की प्रतिदिन सेवा की
जाती थी। १४. इस संसार में जैसे भी हो, वैसे वैभव को इकट्ठा करने का उपाय
करना ही योग्य है । क्योंकि वैभव-विहीन लोगों से सभी पराङ्गमुख
हो जाते हैं। १५. उस सेठ की लक्ष्मी के समान सुन्दरी कमलश्री नाम की अत्यन्त प्रिय
पत्नी थी, जो उसके सभी कार्यों में अनुकूल रहकर प्रतिदिन पति
की भक्ति में लीन रहती थी। १६. सच्ची पत्नी वही हो सकती है जो प्रतिदिन अपने पति की भलाई
में लगी रहती है। अन्य प्रचण्ड स्वभाव वाली पत्तियाँ तो गृहिणी के ___ रूप में पति की शत्रु ही होती हैं। १७. इस संसार में व्यक्ति गृहिणी की कुशलता से सुख पाता है। उसके
अभाव में अत्यन्त कुशल व्यक्ति भी भटकता रहता है। १८. विषय-सुखों का अनुभव करती हुई वह कमलश्री समयानुसार
गर्भवती हुई। सुखद-स्वप्नों को देखती हुई वह हृदय से प्रसन्न रहने
लगी। १९. कुल, सौन्दर्य एवं वैभव से युक्त होने पर तथा अपने पति को अत्यन्त
प्रिय होने पर भी जिस महिला के सन्तान नहीं होती, वह अपने को
अकृतार्थ ही मानती है। २०. उस कमलश्री का गर्भ जैसे-जैसे बढ़ रहा था, तैसे-तैसे उसके अंग
प्रत्यंग भी बढ़ रहे थे । अथवा माता की उदर-वृद्धि ही गर्भ की वृद्धि
कर रही थी। २१. दोहले के परिपूर्ण होते ही समय आने पर जननी के नेत्र एवं मन को
आनंद देने वाला एक पुत्र उत्पन्न हुआ। २२. बालचरित (बाल्य क्रीड़ाएँ) देखने पर दूसरों के हृदयों में भी स्नेह का
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