Book Title: Prakrit Bharti
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 152
________________ भविष्यदत्त काव्य संचार हो जाता है। फिर माँ की तो बात ही अलग है। मां के लिए तो बच्चा ही उसका प्राण है। २३. पत्रोत्पन्न होने पर माता-पिता में परस्पर में स्नेह कम हो जाता है, ऐसा स्त्रियों का नियम है। वस्तुओं में भी ऐसा स्वभाव देखा गया है। २४. विविध लोगों के द्वारा बधाई दिये जाने पर माता-पिता ने बहुत-सी सम्पत्तियाँ दान करक कालक्रम से पुत्र का नाम भविष्यदत्त रखा। २५. आठ वर्ष की आयु में उसे माता-पिता ने पढ़ने के लिए उपाध्याय के पास भेजा। वहाँ उसने अल्प-काल में ही समस्त विद्याओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया। २६. उस विनयी भविष्यदत्त ने अतिशीघ्र ही सर्वज्ञ-भाषित धर्म को जान लिया तथा लोक-व्यवहार का भी ज्ञान प्राप्त कर लिया क्योंकि उसी से इस संसार में निर्वाह करना संभव है। २७. जो व्यक्ति लोक-व्यवहार की उपेक्षा करता है, वह लोगों द्वारा उपे क्षित हो जाता है तथा इससे धर्म की भी हाँनि होती है । २८. संयम से युक्त होने पर भी साधु यदि सर्वज्ञ-मार्ग की उपेक्षा करता है तो वह इस संसार में मिथ्यादृष्टि जीवों से भी हीन कोटि को प्राप्त करता है। २९. मुनिश्रेष्ठ समाधिगुप्त की निन्दा एवं घृणा के दोष से कमलश्री अचा नक ही अपने पति धनपति को अप्रिय हो गई। ३०. धनपति ने उससे कहा- "मेरे नेत्रों के सम्मुख मत रह । तत्काल ही अपने पिता के घर चली जा । मुझसे अधिक मत कहलवा।" ३१. कमलश्री ने कहा-“हे नाथ ! ऐसे कठोर वचन मत कहिये क्योंकि अकारण रोष करने वालों की बच्चे भी हँसी उड़ाते हैं।" ३२. तब धनपति ने अत्यन्त ऋद्ध होकर उसका गला पकड़ कर उसे अपने गृहद्वार से बाहर कर दिया । बेचारी कमलश्री अपने को एकाकी देखकर रोने लगी। ३३. उस कमलश्री ने स्पष्ट जान लिया कि मेरा पति मुझ से निश्चय ही ___ रूठ गया है क्योंकि इसने पहले ऐसा कभी नहीं किया। ३४. वह अत्यन्त दुखित मन से अपने पिता के घर (गजपुर) पहुंच गई। वहाँ उसे इस प्रकार आई हुई देखकर माता-पिता आदि बड़े दुःखी हुए। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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