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लीलावती कथा
१३३ से निजकुल के आकाश के चंद्र की तरह भूषणभट्ट नामक एक पुत्र
उत्पन्न हुआ। २२. चतुर्मुख (ब्रह्मा ) से निकले हुए वेदों के द्वारा एक मात्र अपने कमलमुख में स्थित होने से जिसके प्रिय बान्धवों के द्वारा अपने को अधिक
धन्य माना जाता था। २३. उस भूषणभट्ट के पुत्र, तुच्छबुद्धि वाले मुझ कौतुहल के द्वारा रचित
लीलावती नाम इस कथारत्न को सुनो। शरद-वर्णन : २४. (अ) जिस तरह चन्द्ररूपी केशरि के कर के प्रहार से दलित तिमिर
रूपी हस्तिकुम्भ बिखरे हुए नक्षत्र रूपी मुक्ताफल से उज्जवल शरद
ऋतु की रात्रि में२४. (ब) चाँदनी से व्याप्त कोश की कान्ति से धवल, ( स्वच्छ ) सम्पूर्ण ___ गंध युक्त प्रकम्पित पुष्प-पत्र से रस युक्त घर की वापिकाओं में२४. (स) अत्यन्त मधुर गुन गुन आवाज करने वाले भ्रमर चन्द्र के प्रकाश
में निविघ्नतापूर्वक रसपान कर रहा है। २५. इस शरद ऋतु से चन्द्रमा, चन्द्रमा से भी रात्रि, रात्रि से कुमुदवन,
कुमुदवन से नदी तट और नदी तट से हंसकुल सुशोभित होता है। २६. ( हे प्रिय ! ) नए कमल नाल के कषैले रंग से विशुद्ध कंठ से निकले
हुए अत्यन्त मनोहर शरदऋतु रूपी लक्ष्मी के चरणों के नूपुर की
आवाज वाले हंसों का संभाषण सुनो। २७. शीतलता से युक्त जल की तरंग के सम्पर्क से ठंडी हुई अर्ध विकसित
मालती की मुग्ध (सुन्दर ) कलिका की सुगंध से उत्कृष्ट पवन चल
रहा है। २८. दश-दिशा रूपी बधुओं के मुख के तिलक की पंक्ति की तरह तालाब
के जल में स्वच्छ तरंगों से हिलते हुए वृक्षों की यह वनरात्रि सुशोभित
हो रही है। २९. दिन की संभावना से एक हृदय वाले विरह वेदना से रहित वापियों
में मिल रहे इन चक्रवाक पक्षियों को देखो। ३०. देखो ! विकसित सप्तच्छद की सुगन्ध से आकृष्ट हुए अचिंतित
कुसुम के आस्वाद से पराङ्मुख यह भ्रमर-समूह (शरद ऋतु) में घूम रहा है।
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