________________
जीव अधिकार तथा चोक्तं श्रीविद्यानन्दस्वामिभिः ह्न
(मालिनी) अभिमतफलसिद्धेरभ्युपाय: सुबोधः
सच भवति सुशास्त्रात्तस्य चोत्पत्तिराप्तात् । इति भवति स पूज्यस्तत्प्रसादात्प्रबुद्धः
न हि कृतमुपकारं साधवो विस्मरंति ।।२।। वह धर्म है, जहाँ दया है; वह तप है, जहाँ विषयों का निग्रह है और वह देव है, जो अठारह दोषों से रहित है ह इस संबंध में कोई सन्देह नहीं है।॥१॥
इसके बाद तथा चोक्तं श्री विद्यानंदस्वामिभिःह्न तथा आचार्य श्री विद्यानंदस्वामी द्वारा भी कहा गया है' ह्न लिखकर टीका में एक छन्द प्रस्तुत किया गया है। छन्द का पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्न
(रोला) इष्ट अर्थ की सिद्धि होती है सुबोध से |
अर सुबोध उपलब्धी होती है सुशास्त्र से।। और आप्त से शास्त्र पूज्य हैं आप्त इसलिये।
किया गया उपकार संतजन कभी न भूलें।।२।। अभीष्ट फल की सिद्धि का उपाय सुबोध (सम्यग्ज्ञान) है; सुबोध सुशास्त्र से प्राप्त होता है और सुशास्त्र की उत्पत्ति आप्त से होती है । आप्त की कृपा के कारण, बुधजनों के लिए वे आप्त पूज्य हैं; क्योंकि किये हुए उपकार को सज्जन पुरुष कभी नहीं भूलते।
उक्त छन्द का अत्यन्त स्पष्ट अभिप्राय यह है कि आप्त अर्थात् वीतरागी-सर्वज्ञ भगवान की वाणी ही सुशास्त्र हैं; अत: उनसे ही सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति होती है। इसलिए वीतरागीसर्वज्ञ भगवान हमारे पूज्य हैं, हमें उनकी पूजा, स्तुति, वंदना अवश्य करना चाहिए; क्योंकि वे हमारे उपकारी हैं और सज्जन पुरुष कृतघ्न नहीं होते, अपितु कृतज्ञ होते हैं। किये गये उपकार को सच्चे हृदय से स्वीकार करना कृतज्ञता है और उसे भूल जाना कृतघ्नता है।
'न हि कृतमुपकारं साधवो विस्मरंति' ह्न यह सूक्ति संस्कृत साहित्य की अमूल्य निधि है ।।२।।
उक्त छन्द के उपरान्त मुनिराज पद्मप्रभमलधारिदेव एक छन्द लिखते हैं; जिसमें भगवान नेमिनाथ की स्तुति की गई है। १. आचार्य विद्यानन्दिस्वामी रचित श्लोक, श्लोक संख्या अनुपलब्ध है।