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सामित्तपरूवणा
एइंदियभंगो | णवर सरीरपजत्ती गाहिदि त्ति भाणिदव्वं । सेसाणं ओघं ।
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५९. वेउव्वि० घादि०४ जह० अणुभा० कस्स ० १ अण्ण० देवस्स० पोरइ० सव्वविसु ० जह० वट्ट० । गोद० ओघं । वेदणी०
असंजद ० सम्मादि० सागार-जा० आउ०- गाम० णिरयोघं ।
६०. वेड व्वियमिस्स ० घादि०४ जह० अणुभा० कस्स० ९ अण्ण० देव० णेरइ० असं दस ० से काले सरीरपजत्ती गाहिदि त्ति सागार जा० सव्वविसु ० जह० अणु ० वट्ट० । गोद० जह० अणुभा० कस्स० १ अण्ण० अत्थि य सत्तमाए पुढ० णेरइ० मिच्छादि ० सागा ० जा ० सव्वविसु० से काले सरीर० ६१. आहारका० घादि०४ जह० अणु० कस्स ? अण्ण० सागार-जा० सव्वविसु ० ० । सेसमणुदिसभंगो | एवं आहारमि० । णवरि से काले सरीरपजत्ती गाहिदि तिभाणिदव्वं ।
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वेद० -णामा० ओघं ।
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६२. कम्मह० घादि ०४ जह० अणुभा० कस्स ० अण्ण० चदुर्गादि० असंजदसम्मा० सागारजा० सव्वविसु० जह० वट्ट० । गोद० जह० अणुभा० कस्स० १ अण्ण० अत्थिय सत्तमा पुढ० मिच्छादि० सागार- जा० सव्वविसु० जह० वट्ट० । सेसं परिहै । गोत्रकर्मका भङ्ग एकेन्द्रियोंके समान है। इतनी विशेषता है कि तदनन्तर समयमें शरीर पर्याप्तिको ग्रहण करेगा, ऐसा कहना चाहिये । शेष कर्मोंका भङ्ग ओधके समान है ।
५६. वैक्रियिककाययोगी जीवोंमें चार घातिकर्मोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत, सर्वविशुद्ध और जघन्य अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर देव और नारकी असंयतसम्यग्दृष्टि जीव चार घातिकर्मों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । गोत्रकर्मका भङ्ग के समान है | वेदनीय, आयु और नामकर्मका भङ्ग सामान्य नारकियोंके समान है ।
६०. वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें चार घातिकर्मों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? तदनन्तर समय में शरीर पर्याप्तिको पूर्ण करेगा, ऐसा साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर देव और नारकी असंयतसम्यग्दृष्टि जीव चार घातिकमों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत, सर्वविशुद्ध और तदनन्तर समयमें शरीर पर्याप्तिको पूर्ण करेगा, ऐसा अन्यतर सातवीं पृथिवीका नारकी मिध्यादृष्टि जीव गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । वेदनीय और नाम कर्मका भङ्ग ओके समान है ।
६१. आहारककाययोगी जीवोंमें चार घातिकर्मों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार - जागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर जीव उक्त कर्मोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । शेष कर्मोंका भङ्ग अनुदिशके समान है। इसी प्रकार आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि जो तदनन्तर समय में शरीर पर्याप्तिको ग्रहण करेगा, उसके कहना चाहिए ।
६२. कार्मणकाययोगी जीवोंमें चार घातिकर्मों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत, सर्वविशुद्ध और जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर चार गतिका असंयतसम्यदृष्टि जीव उक्त कर्मोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत, सर्वविशुद्ध और जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर सातवीं पृथिवीका मिध्यादृष्टि नारकी गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। शेष कर्मोंके जघन्य
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