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अंतरपरूवणा
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अणु णत्थि अंतरं । वेद० णाम० गोद० उक्क० जह० एग०, उक्क० लम्मासं० । अणु ० णत्थि अंतरं । एवं मणुस ०३ - पंचिंदि ० -तस०२ - पंचमण ० - पंचवचि ० कायजोगिओरालि० - लोभ० - आभि० - सुद० - ओधि ० - मणपज्ज० संजद- सामाइ० - छेदो०- परिहार • चक्खु ० - अचक्खु ० - ओधिदं ० - सुक्कले ० - भवसि ० - सम्मादि ० खड्ग ० -सण्णि० - आहारग ति । एदेसिं आउ० अणुक्कस्से ० अत्थि अंतरं तेसिं अप्पप्पणो पगदिअंतरं कादव्वं । णवरि मणुसि० - ओधिणा० - मणपज्ज० - ओधिदं० वेद० - णामा०- गोद० उक्क० जह० एग०, उक्क० वाघ० ।
२५५ णिरएसु अट्टष्णं कम्माणं उक्क० जह० एग०, उक्क० असंखेज्जा लोगा । अणु णत्थि अंतरं । णवरि आउ० अणु० अप्पप्पणो पगदिअंतरं ।
भाग बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोक प्रमाण है । अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंका अन्तरकाल नहीं है । वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभाग बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है । अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंका अन्तरकाल नहीं है । इसी प्रकार मनुष्य त्रिक, पंचेन्द्रियद्विक, सद्विक, पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगी, काययोगी, औदारिककाययोगी, लोभकषायवाले, अभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मन:पर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धि संयत, चतुदर्शनी, अचतुदर्शनी, अवधिदर्शनी, शुक्ललेश्यावाले, भव्य, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, संज्ञी और आहारक जीवोंके जानना चाहिये । फिर भी इनके आयुकर्म के अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जो अन्तरकाल है, उनका वह अन्तरकाल प्रकृतिबन्धके अन्तरकालके समान कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि मनुष्यनी, अवधिज्ञानी, मन:पर्ययज्ञानी और दर्शनी जीवों में वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है ।
विशेषार्थ- - चार घाति व चार अघाति कर्मोंका एक समय के अन्तरसे उत्कृष्ट अनुभागबन्ध सम्भव है, इसलिए इनके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय कहा है । क्षपकश्रेणिका उत्कृष्ट अन्तर छह महीना होनेसे वेदनीय, नाम और गोत्रके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका उत्कृष्ट अन्तर छह महीना कहा है और शेष कर्मोंका यदि उत्कृष्ट अनुभागबन्ध न हो, तो वह असंख्यातलोक प्रमाण काल तक नहीं होता। इसलिए शेष कर्मोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोक प्रमाण कहा है। ओघसे आठों कर्मों के अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तरकाल नहीं है, यह स्पष्ट ही है । यहाँ अन्य जितनी मार्गगाएँ गिनाई हैं, उनमें यह ओघ प्ररूपणा अविकल घटित हो जाती है, इसलिए इन मार्गणाओं में अन्तरकाल के समान कहा है। मात्र इनमें बहुत-सी ऐसी मार्गणाएँ हैं, जिनमें आयुकर्म का निरन्तर बन्ध सम्भव नहीं है, अतः उनमें आयुकर्म के प्रकृतिबन्धका जो अन्तर कह आये हैं, वही यहाँ आयुकर्मके अनुत्कृष्ट अनुभागवन्धका अन्तर जानना चाहिए। तथा मनुष्यिनी आदि चार मार्गणाओं में क्षपकश्रेणिका उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व प्रमाण है, अतएव इन मार्गणाओं में वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व प्रमाण कहा है।
२५५. नारकियों में आठ कर्मके उत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोक प्रमाण है । अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका अन्तर काल नहीं है। इतनी विशेषता है कि आयु के अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंका अन्तर काल अपने-अपने प्रकृतिबंध के अन्तर कालके समान कहना चाहिये ।
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