________________
१३२
महाबंधे अणुभागबंधाहियारे भवसि०-आहारग ति। आयु. सव्वपदा णियमा अस्थि । एवं अणंतरासीणं याव अणाहारग त्ति । णिरएसु सत्तण्णं क. भुज०-अप्प० णियमा अस्थि । सिया एदे य अवढिदे य । सिया एदे य अवढिदा य । आउग० सव्वपदा भयणिज्जा । एवं असंखेंजसंखेजरासीणं एदेण बीजेण णेदव्वं याव अणाहारग त्ति ।
भागाभागाणुगमो २८६, भागाभागं दुवि०--ओघे० आदे० । ओघे० सत्तण्णं क. भुज० दुभागो सादि० । अप्पद० दुभागो देसू० । अवढि० असंखें भागो। अवत्त० अणंतभागो। आउ० णाणा भंगो। णवरि अवढि० अवत्त० असंखेंजदिभागो। एवं ओघभंगो कायजोगि-ओरालि०-कोधादि० ४-अचक्खु०-भवसि०-आहारग ति । णिरएसु सत्तणं क. अवत्त० णत्थि । सेसं ओघं। एवं णिरयभंगो असंखेंज-अणंतरासीणं । संखेंजरासीणं पि तं चेव । णवरि यम्हि असंखेजदिभागो तम्हि संखेजदिभागो कादवो। णवरि सव्वसम्मादिट्ठीसु गोदं विवरीदं । सेढीए कम्माणं विसेसो जाणिदव्यो ।
काययोगी, औदारिककायोगी, लोभ कषायवाले जीवोंमें मोहके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवकी अपेक्षा, अचक्षुदर्शनी, भव्य और आहारक जीवोंके जानना चाहिए। आयुकर्मके सब पदवाले जीव नियमसे हैं। इसी प्रकार अनन्त संख्यावाली मार्गणाओंमें अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए। नारकियोंमें सात कर्मों के भुजगार और अल्पतर पदवाले जीव नियमसे हैं। कदाचित् इन पदवाले जीव हैं और अवस्थित पदवाला एक जीव है। कदाचित् इन पदवाले जीव हैं और नाना जीव अवस्थित पदवाले हैं। आयुकर्मके सब पदवाले जीव भजनीय हैं। इसी प्रकार असंख्यात
और संख्यात संख्यावाली राशियोंका इसी बीजपदके अनुसार अनाहारक मार्गणा तक भंगविचय जानना चाहिए।
इस प्रकार नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचयानुगम समाप्त हुआ।
भागाभागानुगम २८६. भागाभागानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-आध और आदेश। ओघसे सात कर्मों के भुजगारपदके बन्धक जीव साधिक द्वितीयभाग प्रमाण हैं। अल्पतर पदके बन्धक जीव कुछ कम द्वितीयभाग प्रमाण हैं। अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं। प्रवक्तव्य पदके बन्धक जीव अनन्त-भागप्रमाण हैं। आयुकर्मका भंग ज्ञानावरणके समान है । इतनी विशेषता है कि अवस्थित और अवक्तव्यपदके बन्धक जीव असंख्यातवें भाग प्रमाण है। इसी प्रकार ओघके समान काययोगी, औदारिककाययोगी क्रोधादि चार कषायवाले, अचक्षुदर्शनी, भव्य
और आहारक जीवोंके जानना चाहिये । नारकियोंमें सात कर्मो के अवक्तव्यपदके बन्धक जीव नहीं हैं। शेष पदोंका भंग ओघके समान है। इसी प्रकार नारकियोंके समान असंख्यात और अनन्त राशिवाली मार्गणाओंमें जानना चाहिए। संख्यात राशिवाली मार्गणाओंमें भी वही भंग है। इतनी विशेषता है कि जहाँ पर असंख्यातवें भाग प्रमाण कहा है, वहाँ पर संख्यातवें भाग प्रमाण काना चाहिये। इतनी विशेषता है कि सब सम्यग्दृष्टि जीवोंमें गोत्रकमको विपरीत क्रमसे कहना चाहिए। तथा श्रेणियों में कर्मोंकी जो विशेषता हो, वह जान लेनी चाहिए ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org