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महाबंधे अणुभागबंधाहियारे णेरइ० सव्वसंकि० । तित्थ० ज० क० । अण्ण० देव० णेरइ० सव्वसंकि० । एवं चेव वेउव्वियमि० । णवरि आउभं णत्थि ।
४५६. आहार०-आहारमि० पंचणा०-छंदसणा०-चदुसंज-पंचणोक०-अप्पसत्यवण्ण०४-उप०-पंचंत० जह० क० ? अण्ण. सागा० सव्ववि० । सादादिचदुयुगं० ज० क० १ अण्ण० परिय०मज्झिम० । अरदि-सोग० ज० क० ? अण्ण० तप्पा०विसु० । देवायु० ज० क० ? अण्ण० परिय०मज्झिम० । देवग०-पंचिंदि०-वेउव्वि०-तेजा०क०-समचदु०--वेउवि०अंगो०-पसत्थवण्ण०४-देवाणु०-अगु०३-पसत्थवि०-तस०४सुभग-सुस्सर-आदें-णिमि०-तित्थ०-उच्चा० ज० क० ? अण्ण० सागा० उक्क०संकि० ।
४५७. कम्मइ० पंचणा०-छदंसणा०-वारसक०-पंचणोक०-अप्पसत्थवण्ण०४उप०-पंचंत० ज० क० १ अण्ण० चदुगदि० सम्मादि० सागा० सव्ववि० । थीणगिद्धि०३. मिच्छ०-अणंताणुबं०४ ज० क० १ अण्ण० चदुगदि० मिच्छादि० सागा० सव्ववि० । स्वामी कौन है ? सर्वसंक्लेशयुक्त अन्यतर देव और नारकी उद्योतके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्वे संक्लेशयुक्त अन्यतर सम्यग्दृष्टि देव और नारकी तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें आयओंका बन्ध नहीं होता।
४५६. आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, चार संज्वलन, पाँच नोकषाय, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। साता आदि चार युगलोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनु. भागबन्धका स्वामी है । अरति और शोकके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य विशुद्ध अन्यतर जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। देवायुके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर जीव देवायुके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। देवगति, पञ्चन्द्रिय जाति, वैक्रियिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, समचतुरस्त्रसंस्थान,वैक्रियिक श्राङ्गोपाङ्ग, प्रशस्त वर्णचतुष्क, देवगत्यानुपूर्वी अगुरुलघुत्रिक प्रशस्त विहायोगति, त्रस चतुष्क, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण, तीर्थङ्कर और उच्चगोत्रके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त अन्यतर जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है।
४५७. कार्मणकाययोगी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, बारह कषाय, पाँच नोकषाय, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात और पाँच अन्तरायके जवन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर चार गतिका सम्यग्दृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चारके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर चार गतिका मिथ्याष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । सातादि चार युगलोंके जघन्य अनुभाग
१. ता० श्रा० प्रत्योः चदुश्रायुगति पाठः।
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