Book Title: Mahabandho Part 4
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 299
________________ २७४ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे तिण्णिभंगा० । ज० अंतो०, उक्क० अद्धपोग्गल० । सादासाद०-चदुआयु-णिरयगदिचदुजादि-पंचसंठा-पंचसंघ०-णिरयाणु०-अप्पसत्थवि०-थावरादि०४-थिराथिर-सुभासुभ०-दूभग-दुस्सर-अणादें-जस०-अजस० ज० ज० एग०, उक्क० चत्तारिसम० । अज० ज० एग०, उक्क० अंतो० । इत्थि०--णवूस०--अरदि०सोग-आदाउज्जोव० ज० ज० एग०, उक्क० बेसम० । अज० ज० एग०, उक्क० अंतो० । पुरिस० ज० ए० । अज० जह० एग०, उक्क० बेचावहि. सादि० । हस्स-रदि-आहारदुगं ज० एग० । अज० ज० एग०, उक्क० अंतो० । तिरिक्व०-तिरिक्खाणु०-णीचा० ज० एग० । अज० ज० एग०, उक्क० असंखेज्जा० लोगा। मणुस०-वज्जरि०-मणुसाणु० ज० ज० एग०, उक्क० चत्तारि सम० । अज० ज० एग०, उक्क० तेत्तीसं । देवगदि-देवाणु० ज० ज० एग०, उक्क० चत्तारि सम० । अज० ज० एग०, उक्क० तिण्णिपलि. सादि०। पंचिंदि०पर०-उस्सा०-तस०४ ज० ज० एग०, उक० बेसम० । अज० ज० एग०, उ० पंचासीदिसागरोवमसदं । ओरालि०-तेजा०-क०-पसत्थवण्ण०४-अगु०-णिमि० ज० ज० समय है। अजघन्य अनुभागबन्धके तीन भङ्ग हैं। उनमें से सादि-सान्त विकल्पकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल अर्धपुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। साता वेदनीय, असातावेदनीय, चार आयु, नरकगति, चार जाति, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, नरकगत्यानुपूर्वी, अप्रशस्त विहायोगति, स्थावर आदि चार, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय, यशःकीर्ति और अयशःकीर्तिके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल चार समय है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, अरति, शोक, आतप और उद्योतके जघन्य अनुभाग बन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहर्त है। परुषवेदके जघन्य अनुभाग बन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल साधिक दो छियासठ सागर है। हास्य, रति और आहारकद्वि कके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी और नीचगोत्रके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजवन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल असंख्यात लोकप्रमाण है। मनुष्यगति, वनपभनाराचसंहनन और मनुष्यगत्यानुपूर्वी के जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल चार समय है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तेतीस सागर है। देवगति और देवगत्यानुपूर्वीके जघन्य अनुभाग बन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल चार समय है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल साधिक तीन पल्य है । पञ्चन्द्रियजाति, परघात, उच्छवास और सचतुष्कके जघन्य अनुभाग बन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल एकसौ पचासी सागर है। औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघु और निर्माणके जघन्य अनुभागवन्धका जघन्य काल १. ता. श्रा०प्रत्योः तिभंगि० इति पाठः। २. ता. प्रतौ सादासादासाद (?) इति पाठः । ३. ता० प्रती श्रादावुजोव० ज० ए० इति पाठः । ४. ता० प्रती अज० ए० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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