Book Title: Mahabandho Part 4
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 371
________________ ३४६ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे ५७५. माणे पंचणा०-सत्तदंसणा-मिच्छ०-पण्णारसक०-पंचंत० [कोध भंगो। णवरि कोधसंजल. अणु० ज० एग०, उ. अंतो० । मायाए पंचणा०-सत्तदंसणा०मिच्छ०-चौदसक०-पंचंत० [कोध०भंगो।] णवरि कोध-माणसंज. अणु० ज० एग०, उ० अंतो०। लोभे पंचणा०-सत्तदसणा०-मिच्छ०-बारसक०-पंचंत० उ० ज० एग०, उ. अंतो० । अणु० ज० एग०, उ० बेसम० । णवरि चत्तारिसंज० अणु० ज० एग०, उ. अंतो० । सेसाणं कोधभंगो।। कराके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तमुहूर्त प्रमाण उत्कृष्ट अन्तरकाल ले आना चाहिए। प्रथम दण्डकमें अन्य सब प्रकृतियाँ ध्रुवबन्धिनी हैं। मात्र चार आयुका अन्तमुहूर्त कालतक ही बन्ध होता है, फिर भी इन सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल दो समय होनेसे यहाँ इनके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर दो समय कहा है । दूसरे दण्डकमें कही गई अन्य सब प्रकृतियाँ परावर्तमान हैं, अतः इनके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त कहा है । रहीं निद्रा और प्रचला दो प्रकृतियाँ सो क्रोध कषायसे उपशमश्रोणिपर चढ़े हुए जीवके इनकी बन्धव्युच्छित्ति कराकर कमसे कम एक समयतक और अधिकसे अधिक अन्तमुहूर्त कालतक उपशमश्रोणिमें रखकर मरण करावे तथा क्रोधकषायके साथ ही देवपर्यायमें उत्पन्न कराकर इनका बन्ध करावे। इस प्रकार यहाँ निद्रा और प्रचलाके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त प्राप्त होनेसे वह उक्त प्रमाण कहा है। सातावेदनीय आदि तथा आहारकद्विकका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध क्षपकोणिमें होता है, अतः इसके अन्तरकालका निषेध किया है। तथा सातावेदनीय आदि परावर्तमान प्रकृतियाँ होनेसे इनके अनुत्कृष्ट अनभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त कहा है और आहारकद्विकका बन्ध करनेवाला अप्रमत्तसंयत प्रमत्तसंयत होकर पुन: जबतक अप्रमत्तसंयत होकर आहारकद्विकका वन्ध करता है तबतक क्रोधकषाय बदल जाता है, अतः यहाँ आहारकद्विकके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धके अन्तरकालका भी निषेध किया है। ५७५. मानकषायमें पाँच ज्ञानावरण, सात दर्शनावरण, मिथ्यात्व, पन्द्रह कषाय और पाँच अन्तरायका भङ्ग क्रोधकषायके समान है। इतनी विशेषता है कि क्रोधसंज्वलनके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। मायाकषायमें पाँच ज्ञानावरण, सात दर्शनावरण, मिथ्यात्व, चौदह कापाय और पाँच अन्तरायका भङ्ग क्रोधकषायके समान है। इतनी विशेषता है कि क्रोध और मानसंज्वलनके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है । लोभकषायमें पाँच ज्ञानावरण, सात दर्शनावरण, मिथ्यात्व, बारह कषाय और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहर्त है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है। इतनी विशेषता है कि चार संज्वलनके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग क्रोधके समान है। विशेषार्थ-मानकषायमें क्रोधसंज्वलनकी. मायाकषायमें क्रोध और मान संज्वलनकी तथा लोभकषायमें चारों संज्वलनोंकी बन्धव्युच्छित्ति होकर इन कषायोंका सद्भाव बना रहता है, अतः कोई जीव इनकी बन्धव्युच्छित्तिके बाद एक समयतक उपशमश्रेणिमें रहकर दूसरे समयमें विवक्षित कषायके साथ मरकर देव हो जावे या अन्तमुहूर्तकालतक उपशमश्रोणिमें रहकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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