Book Title: Mahabandho Part 4
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 333
________________ ३०८ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे पंचंत० ज० एग० । अज'० ज० अंतो०, उक्क० तत्तीसं० सादि० । थीणगिद्धि०३मिच्छ०-अणंताणु०४ ज० एग० । अज० ज० एग० अंतो०, उक्क० ऍक्त्तीसं० सादि०। सादासाद०--दोआयु०--पंचसंठा०-पंचसंघ०--अप्पसत्थ०--थिरादितिण्णियुगल०--दूभगदुस्सर-अणादें-णीचा० ज० ज० एग०, उक्क० चत्तारिसम० । अज० ज० एग०, उक्क० अंतो० । इत्थि०-णqस०-अरदि-सोग-देवगदि०४ ज० ज० एग०, उक्क० बेसम० अज० सादभंगो । पुरिस० ज० एग० । अज० ज० एग०, उक्क० तेत्तीसं० सादि। हस्स-रदि-आहारदुगं ओघं । मणुसगदिपंचग० ज० ज० एग०, उक्क० बेस० । अज ज० एग०, उक्क० तेत्तीसं० । पंचिंदि०--तेजा०--क० --पसत्थ०४-अगु०३-तस०४-- णिमि०-तित्थ०-ज० ज० एग०, उक्क० बेसम० । अज० जह० एग०, उक्क० तेतीसं. सादि० । समचदु०-पसत्थ०-सुभग-सुस्सर-आदे०-उच्चा० ज० ओघं। अज० ज० एग०, उक्क० तैंतीसं० सादि० । अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य अनुभागवन्धका जघन्य काल अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है। स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चारके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य अनुभागवन्धका जघन्य काल एक समय और अन्तमुहूर्त है तथा उत्कृष्ट काल साधिक इकतीस सागर है । सातावेदनीय, असातावेदनीय, दो आयु, पाँच . पाँच संहनन, अप्रशस्त विहायोगति. स्थिर आदि तीन युगल. दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय और नीचगोत्रके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल चार समय है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है । स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, अरति, शोक और देवगतिचतुष्कके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है। अजघन्य अनुभागबन्धका भङ्ग सातावेदनीयके समान है । पुरुषवेदके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है। हास्य, रति और आहारकद्विकका भङ्ग ओघके समान है। मनुष्यगतिपञ्चकके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तेतीस सागर है । पञ्चन्द्रिय जाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, त्रसचतुष्क, निर्माण और तीर्थङ्करके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है। समचतुरस्त्र संस्थान, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर, आदेय और उच्चगोत्रके जघन्य अनुभागबन्धका काल ओधके समान है। अजवन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है । विशेषार्थ-शुक्ललेश्यामें पाँच ज्ञानावरणादि ३५ प्रकृतियाँ, पुरुषवेद, पञ्चन्द्रिय जाति आदि १६ प्रकृतियाँ, और समचतुरस्र आदि६ प्रकृतियाँ इन ५८ प्रकृतियों के अजघन्य अनुभागबन्धका किन्हीं के ध्रुवबन्धिनी होनसे तथा किन्हींके सम्यक्त्वीके नियमसे बँधनेवाली होनेसे उत्कृष्ट १. ता० श्रा० प्रत्योः पंचंत० ज० एग०. अज० ज० एग०, अज० इति पाठः। २. ता० प्रा० प्रत्योः उच्चा० ओघं। ज. श्रोघं इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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