Book Title: Mahabandho Part 4
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 340
________________ अंतरपरूवणा ३१५ मसंखेंज्जा पोग्गलपरि० । अणु० ज० एग०, उक्क० अंतो० । थीणगिदि०३-मिच्छ०अणंताणुबं०४-इत्थि० उ० ज० एग०, उ० अणंतकालं० । अणु० ज० एग०, उ० बे छावहि० देसू० । सादा०-पंचिंदि-तेजा-क०-समचदु०-पसत्थ०४-अगु०३-पसत्यवि०तस०४-थिरादिछ०-णिमि०-तित्थ० उक्क० णत्थि अंतरं । अणु० ज० एग०, उक्क० अंतो। अह० उ० ज० एगे०, उ० अणंतका० । अणु० ज० एग०, उ० पुव्वकोडी देसू० । णबुंस०-पंचसंठा०-पंचसंघ०-अप्पसत्थ०-भग-दुस्सर-अणा-णीचा० उ० णाणावरणभंगो। अणु० ज० एग०, उ० बेछावहि. सादि० तिणिपलि० देसू० । णिरयमणुसोयु-णिरयगदि-णिरयाणु० उ० अणु० ज० एग०, उ० अणंतका० । तिरिक्खायु० उ० णाणाभंगो । अणु० ज० एग०, उ० सागरोवमसदपुध० । देवायु० उ० ज० एग०, उ० अदपोग्गल० । अणु० ज० एग०, उ० अणंतकालं। तिरिक्खगदि-तिरिक्खाणु. उ० णाणा०भंगो । अणु० ज० एग०, उ० तेवहिसोगरोवमसदं । मणुस०-मणुसाणु० उ० ज० एग०, उ० अद्धपोग्गल० । अणु० ज एग०, उक्क० असंखेंज्जा लोगा । देवगदि०४ समय है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है । स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी चार और स्त्रीवेदके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम दो छियासठ सागर है । सातावेदनीय, पञ्चन्द्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, समचतुरस्रसंस्थान, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, प्रशस्त विहायोगति, सचतुष्क, स्थिर आदि छह, निर्माण और तीर्थङ्करके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तर काल नहीं है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। आठ कषायोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है । अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटि है। नपुंसकवेद, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय, और नीचगोत्रके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। अनुत्कृष्ट अनुभागवन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक दो छियासठ सागर और कुछ कम तीन पल्य है । नरकायु, मनुष्यायु, नरकगति और नरकगत्यानुपूर्वीके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है। तिर्यञ्चायुके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तर ज्ञानावरणके समान है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर सौ सागर पृथक्त्व प्रमाण है। देवायुके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अधपुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है। तिर्यञ्चगति और तिर्यश्वगत्यानुपूर्वीके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तर ज्ञानावरणके समान है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर एकसौ त्रेसठ सागर है। मनुष्यगति और मनुष्यगत्यानुपूर्वी के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अर्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर १. ता० श्रा० प्रत्योः सादासादक पंचिंदि० इति पाठः । २. श्रा० प्रती अट्ट ज.एग० इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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