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अंतर परूवणा
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५७२. वंस० पंचणा ० छदंसणा ० चदुसंज० - भय-- दु० -- अप्पसत्य०४ - उप०पंचत० उ० ओघं । अणु० ज० एग०, उ० बेसमं० । श्रीण गिद्धि ०३ - मिच्छ० - अणंताणु ०४ - इत्थि - स ० - तिरिक्ख० पंचसंठा० - पंचसंघ० - तिरिक्खाणु ० -- अप्पसत्यवि०दूर्भाग- दुस्सर- अणादें - णीचा० उ० ओघं । अणु० ज० एग०, उ० तैतीस देसू० । सादा० पंचिंदि० - समचदु० -- पर० - उस्सा ० - पसत्थ० --तस०४ - थिरादिछ० उ० णत्थि अंतरं । अणु० ज० एग०, उ० अंतो० । असादा० - पंचणोक० अथिर- असुभ-अजस उ० अणु० ओघं । अट्ठक० - तिण्णिआयु० -- वेडव्वियछ ० -- मणुस ० - मणुसाणु ० - उच्चा० [ उक्क० ] अणु • ओघं । देवायु० मणुसभंगों । चदुजा० आदाव थावरादि०४ उक्क० ओघं । अणु० ज० एग०, उ० तेत्तीस ० सादि० । ओरालि० - ओरालि० अंगो० वज्जरि० उ० ओघं । अणु० ज० एग०, उ० पुव्वकोडी दे० । आहारदुगं उ० अणु० ओघं । [ तेजा ० क ०-पसत्थवण्ण४ - अगु० - णिमि० उक्क० अणुक० णत्थि अंतरं । ] उज्जो ० उ० ओघं । अणु० ज० ए०, उ० तैंतीसं० सू० । तित्थ० उ० णत्थि अंतरं । अणु० ज० उ० तो ० ।
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५७२. नपुंसकवेदी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, चार संज्वलन, भय, जुगुप्सा, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात और पाँच अन्तराय के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तर ओघ के समान है । अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है । स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व अनन्तानुबन्धी चार, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, तिर्यञ्चगति, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय और नीचगोत्रके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तर ओघ के समान हैं । अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है । सातावेदनीय, पश्चन्द्रियजाति, समचतुरस्त्रसंस्थान, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त विहायोगति, त्रसचतुष्क और स्थिर आदि छहके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तर काल नहीं है । अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । असातावेदनीय, पाँच नोकपाय, अस्थिर, अशुभ और अयश:कीर्ति के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तर के समान है। आठ कपाय, तीन आयु, वैक्रियिक छह, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, और उच्चगोत्र के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तर ओघ के समान है । देवशयुका भङ्ग मनुष्य के समान है । चार जाति, तप, और स्थावर आदि चारके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तर ओघ के समान है । अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर है । औदारिक शरीर, औदारिक आङ्गोपाङ्ग और वज्रर्षभनाराचसंहननके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तर ओके समान है । अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटि है । आहारक द्विकके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका भङ्ग समान है । तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघु और निर्माणके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तर काल नहीं है । उद्योतके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका अन्तर ओघके समान है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर
१. ता० प्रतौ ए० बेसम० इति पाठः । २. ता० प्रा० प्रत्योः उच्चा० अणु० इति पाठः । ३. ता० श्रा० प्रत्योः मणुसादिभंगो इति पाठः ।
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