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महाबंध अगुभागबंधाहियार
कालो ३६५. कालाणुगमेण सत्तणं कम्माणं अवत्त० जह० एग०', उक्क० संखेंजसम० | सेसा तेरसपदा आउ० सव्वपदा सम्बद्धा। अट्ठण्णं कम्माणं अववि० अवत्त० भुज भंगो। एवं पंचवड्डी-पंचहाणी अप्पप्पणो अवट्टि०भंगो । अणंतगुणवड्डि-हाणी भुज० अप्प०भंगो। एदेण बीजेण याव अणाहारग त्ति णेदव्वं ।।
अंतरं ३६६. अंतराणुगमेण सत्तण्णं कम्माणं अवत्त० जह० एग०, उक्क. वासपुवत्तं । सेसपदा० णत्थि अंतरं । आउ० सत्यपदा० णस्थि अंतरं । एवं अढण्णं कम्माणं अवट्ठि. अवत्त० भुज० अबढि० अवत्तभंगो। पंचवड्डो पंचहाणी अप्पप्पणो अवढि भंगो। अणंतगुणतड्डि-हाणी भुज०-अप्पद भंगो । एवं याव अणाहारग त्ति णेदव्यं ।
भावो ३६७. भावाणुगमेण अटुण्णं कम्माणं चोद्दसपदाणं को भायो ? ओदइगो मावो। एवं याव अणाहारग त्ति गेदव्वं । विशेषता है कि अपगतवेद और सूक्ष्मसाम्परायिकसंयत जीवाम अनन्त गुणवृद्धि और अनन्तगुणहानिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके अनुसार करना चाहिए । इस प्रकार स्पर्शनानुगम समाप्त हुआ।
काल ३६५. कालानुगमकी अपेक्षा सात कर्मों के प्रवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। शेष तेरह पद और आयुकर्मके सब पदोंके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है। आठ कर्मों के अवस्थित और अवक्तव्यपदका भंग भुजगारके समान है। इसी प्रकार पाँच वृद्धि और पाँच हानिके बन्धक जीवोंका भंग अपने-अपने अवस्थित पदके समान है । अनन्तगुणवृद्धि और अनन्तगुणहानिके बन्धक जीवोंका भंग भुजगारबन्धके और अल्पतरपदके समान है। इस बीजपदके अनुसार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए।
अन्तर ३६६. अन्तरानुगमको अपेक्षा सात कर्मो के अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व प्रमाण है ! दोष पदोंके बन्धक जीवोंका अन्तरकाल नहीं है। आयुकर्मके सब पदोंके बन्धक जीवों का अन्तरकाल नहीं है। इसी प्रकार आठों कोंके अवस्थित और अवक्तव्यपदके चन्धक जीवोंका अन्तरकाल भुजगारबन्धके अवस्थित और अवक्तव्य पदके अन्तरकालके समान जानना चाहिए । पाँच वृद्धि और पाँच हानिके बन्धक जीवोंका अन्तरकाल अपने-अपने अवस्थितपदक समान है। अनन्तगुणवृद्धि और अनन्तगुणहानिके बन्धक जीवोंका अन्तरकाल भुजगारबन्धके और अल्पतरपदके अन्तरकालके समान है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । इस प्रकार अन्तरानुगम समाप्त हुआ।
भाव ३६०. भावानुगमकी अपेक्षा आठ कर्मों के चौदह पदोंके बन्धक जीवोंका कौनसा भाव है ? औदयिकभाव है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
, ता. प्रतौ कालाणु० ज० ए० इति पाठः ।
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