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सामित्तपरूवणा
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अरदि-सोग० ज० कस्स ० १ अण्ण० सम्मादि ० तप्पा०विसु० । दोआयु० जह० कस्स ० १ अण्ण० जहण्णिगाए पज्जत्तगणिव्वत्तीए णिव्वत्त० मज्झिम० । तिरिक्ख० मणुस ०वस्संठा० - इस्संघ० -- दोआणु० - दोविहा० - तिष्णियुग-णीचागो० उच्चा० जह० कस्स० ? अण्ण० मिच्छा० परिय० मज्झिम० । एइंदि ० थावर० ज० कस्स ० १ अण्ण० ईसाणंतदेवस्स मिच्छादि० परिय० मज्झिम० । पंचिदि० --ओरालि० अंगो० -तस० जह० कस्स० ? अण्ण० सण्णक्कुमार उवरिं याव सहस्सार ति मिच्छा० सव्वसंकि० । ओरालि० - तेजा० क० - पसत्थवण्ण०४- अगु० ३ उज्जो ० - बादर - पज्ज०-पत्ते ० - णिमि० जह० कस्स० ? अण्ण० मिच्छा० सव्वाहि० सागा० सव्वसंकि० । आदाव० जह० कस्स० १ अण्ण० ईसानंत० मिच्छा० सव्वसंकि० । तित्थय० जह० कस्स० ? अण्ण० सम्मा० सागा • तप्पा० संकि० ।
४४६. एवं भवण० - वाणवेंतर - जोदिसि० - सोधम्मीसाण० । णवरि पंचिदि०ओरालि० अंगो०. ०-तस० जह० कस्स ० १ अण्ण० मिच्छा० तप्पा०संकि० । अथवा पंचिंदि० [०-तस० ज० कस्स० १ अण्ण० मिच्छा० परिय० मज्झिम० । सणक्कुमार अरति और शोकके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य विशुद्ध अन्यतर सम्यदृष्टि देव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । दो आयुओं के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? जघन्य पर्याप्त निवृत्तिसे निवृत्तमान और मध्यम परिणामवाला श्रन्यतर देव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । तिर्यञ्चगति, मनुष्यगति, छह संस्थान, छह संहनन, दो आनुपूर्वी, दो विहायोगति, मध्यके सुभगादिक तीन युगल, नीचगोत्र और उच्चगोत्रके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर मिध्यादृष्टि देव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । एकेन्द्रिय जाति और स्थावर के जवन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर मिध्यादृष्टि ऐशान कल्पतकका देव उक्त प्रकृतियोंके जवन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। पचेन्द्रिय जाति, औदारिक आङ्गोपाङ्ग और त्रसके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्वसंक्लेशयुक्त अन्यतर सनत्कुमार से लेकर सहस्रार कल्प तकका मिध्यादृष्टि देव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । औदारिक शरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, उद्योत, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक और निर्माणके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त साकार-जागृत और सर्व संक्लेशयुक्त श्रन्यतर मिध्यादृष्टि देव उक्त प्रकृतियों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। आपके जधन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्व संक्लेशयुक्त अन्यतर ऐशान कल्पतकका देव उक्त प्रकृतिके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत और तत्प्रायोग्य संक्लेशयुक्त अन्यतर सम्यग्दृष्टि देव उक्त प्रकृतिके जधन्य अनुभागबन्धका स्वामी है ।
४४६. इसी प्रकार भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी और सौधर्म-ऐशान कल्पके देवोंके जानना चाहिए | इतनी विशेषता है कि इनमें पञ्चन्द्रिय जाति, औदारिक आङ्गोपाङ्ग और त्रसके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य संक्लेशयुक्त अन्यतर मिध्यादृष्टि देव उक्त प्रकृतियों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । अथवा पञ्च ेन्द्रिय जाति और त्रसके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर मिध्यादृष्टि देव उक्त प्रकृतियोंके १. ता० प्रतौ दोवि० तिरिण इति पाठः ।
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