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सामित्तपरूवणा
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कस्स० ? अण्ण० देव णेरइगस्स मिच्छादि० सागा० णिय० उक्क० संकिंलि० उक्क०अणु० वट्ट० । मणुसंगदि-ओरालि०-ओरालि० अंगो० - वजरि०- मणुसाणु० उक्क० अणुभा० कस्स ० १ अण्ण० देव णेरइ० सम्मादि० सागा० सव्त्रविसु० उक्क० वट्ट० | देवगदिपंचिंदि० - वेउव्वि ० - आहार० तेजा ० क० - समचदु० - दो अंगो० - पसत्थ० वण्ण०४ - देवाणु०अगु० - पर० - उस्सा० ' - पसत्थ० -तस ०४ - थिरादिपंच - णिमि ०- तित्थय० उक्क० अणु ० कस्स ० १ अण्ण० खवग० अपुव्त्रकरण० परभवियणामाणं चरिमे अणु० वट्ट० । एइंदि०थावर • उक्क० अणु० कस्स ० १ अण्ण० सोधम्मीसाणंत मिच्छादि० सागा० णिय ० उक्क० संकिलि० वट्ट० । आदाव उक्क० अणु० कस्स० १ अण्ण० तिगदियस्स सण्णिस्स सागा० जा ० तप्पा०विसु० उक्क० चट्ट० । उजो० उक्क० अणु० कस्स० ? अण्ण• सत्तमा पुढवीए णे इ० मिच्छा० सव्वाहि पञ्ज० सागा० - जागा० सव्वविसु० सेकाले सम्मतं पडिवजहिदि ति उक्क० वट्ट० ।
४१०. रइएस पंचणा० णवदं गा० - असादा० - मिच्छ० सोलसक० पंचणोक ०तिरिक्खग० झुंड ० - असंपत्त० - अप्पसत्थवण्ण०४ - तिरिक्खाणु० - उप० - अप्पसत्थ० -अधिरादिछ० णीचा० - पंचंत० उक्क० अ० कस्स० : अण्ण० मिच्छा० सव्वाहि पज० तिर्यञ्चगति, सम्प्राप्तासृपाटिका संहनन और तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन हैं ? मिध्यादृष्टि साकार जागृत नियमसे उत्कृष्ट संक्लिष्ट उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर देव और नारकी उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । मनुष्यगति, औदारिकशरीर, औदारिकश्राङ्गोपाङ्ग, वज्रश्ऋषभनाराचसंहनन और मनुष्यगत्यानुपूर्वी के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सम्यग्दृष्टि, साकार, जागृत, सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर देव और नारकी उक्त प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । देवगति, पञ्चेन्द्रियजाति, वैकियिकशरीर, आहारकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, समचतुरस्त्रसंस्थान, दो आङ्गोपाङ्ग, प्रशस्त वर्णचतुष्क, देवगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त विहायोगति, त्रसचतुष्क, स्थिर आदि पाँच, निर्माण और तीर्थङ्करके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर क्षपक अपूर्वकरण जो परभवसम्बन्धी नामकर्मकी प्रकृतियोंका अन्तिम समय में उत्कृष्ट अनुभागबन्ध कर रहा है, वह उक्त प्रकृतियों के उ अनुभागबन्धका स्वामी है । एकेन्द्रियजाति और स्थावरके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? मिध्यादृष्टि, साकार-जागृत, नियमसे उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाला और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर सौधर्म और ऐशान कल्पका देव उन प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । आतपके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? संज्ञी, साकारजागृत, तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणामवाला और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर तीन गतिका जीव आतप के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । उद्योतके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? मिध्यादृष्टि, सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त, साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध, तदनन्तर समय में सम्यक्त्वको प्राप्त होनेवाला और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर सातवीं पृथिवीका नारकी उद्योतके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है ।
४१०. आदेश से नारकियों में पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असातावेदनीय, मिथ्यात्व सोलह कषाय, पाँच नोकषाय, तिर्यगति, हुण्डसंस्थान, असम्प्राप्तासृपाटिकासंहनन, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, उपघात, अप्रशस्त विहायोगति, अस्थिर आदि छह नीचगोत्र और पाँच १ आ० प्रतौ भगु० उप० उस्सा० इति पाठः ।
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