________________
सामित्तपरूवणा
उच्चा० उक० [अणु० कस्स० १] अण्ण० संजदासंजद० सागा० णिय० सम्ववि० उक्क० वट्ट० । इत्थि०-पुरिस०-हस्स-रदि-णिरयाउ-तिरिक्खगदि-चदुजादि-चदुसंठा-पंचसंघ०तिरिक्खाणु०-थावरादि४ उक० अणु० कस्स० ? अण्ण. सागा. तप्पा०संकिलि० । [तिरिक्ख-मणुसाउ०-मणुस०-ओरालि०-ओरालि०अंगो०-बजरि०-मणुसाणु०-आदावाउज्जो० उक्क० अणु० कम्स० १ अण्ण पंचिंदि० सण्णि मिच्छादि० सव्वाहि पन्ज. उक्क० अणु० तप्पा० विसु० उक्क० वट्ट० । देवाउ० उक्क० अणु० कस्स ? अण्ण० संजदासंजद. सागा. णिय. तप्पा० विसु० उक० वट्ट । एवं पंचिंदि० तिरिक्ख०३ ।
४१२. तिरिक्ख०अपजत्तेसु पंचणा-णवदंस० असादा०-] मिच्छ०-सोलसक०-पंचणोक०-तिरिक्ख० एइंदि० हुंड-अप्पसस्थवण्ण०४-तिरिक्खाणु०- उप०-थावरादि:अथिरादिपंच-णीचा०-पंचंत० उक्क ० अणु० कस्स० १ अण्ण० सणि सागा.णिय० उक० संकिलि० उक० अणु० वट्ट । सादा०-मणुस-पंचिंदि० ओरालि०-तेजाक० समचदु०
ओरालि अंगो०-वजरि० पसत्थ०वण्ण०४-मणुसाणु०-अगु०३-पसत्थ०-तस०४-थिरादिछ०-णिमि०-उच्चा० उक्क० अणु० कस्स० ? अण्ण० सण्णिस्स सागा० सव्वविसु० उक्क० वट्ट० । इत्थि०-पुरिस०-हस्स-रदि-तिण्णिजादि-चदुसंठा० पंचसंघ०-अप्पसत्थ०-दुस्सर०
जागृत, नियमसे सब पर्याप्तियोंसे पयांप्त, सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनभागबन्ध करनेवाला अन्यतर संयतासंयत जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी है । स्त्रीवेद, पुरुषवेद, हास्य, रति, नरकायु, तिर्यश्चगति, चार जाति, चार संस्थान, पाँच संहनन, तिर्यंचगत्यानुपूर्वी और स्थावर आदि चारके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और तस्यायोग्य संक्लेश परिणामवाला अन्यतर जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी है। तिर्यञ्च श्रायु, मनुष्य आयु, मनुष्यगति, औदारिकशरीर, औदारिक प्राङ्गोपाङ्ग, वनऋषभनाराचसंहनन, मनुष्यगत्यानपूर्वी, आतप और उद्योतके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्व पर्याप्तियोंसे पर्याप्त, तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणामवाला और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यता मिथ्यादृष्टि संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । देवायुके उत्कृष्ट अनभागबन्धका स्वामी कौन है १ नियमसे तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणामवाला, साकार-जागृत और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर संयता. संयत जीव उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी है । इसी प्रकार पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चत्रिकमें जानना चाहिये ।
४१२. तिर्यश्च अपर्याप्तकोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, पाँच नोकषाय, तिर्यश्चगति, एकेन्द्रियजाति, हुण्डसंस्थान, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, तिर्यश्वगत्यानपूर्वी, उपघात, स्थावर आदि चार, अस्थिर आदि पाँच, नीचगोत्र और पाँच अन्तराय के उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, नियमसे उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाला
और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर संज्ञी जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । सातावेदनीय, मनुष्यगति, पञ्चेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, समचतुरस्रसंस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग,वऋषभनाराचसंहनन,प्रशस्तवर्ण चतुष्क, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुत्रिक, प्रशस्तविहायोगति, बस आदि चार स्थिर आदि छह, निर्माण और उच्चगोत्रके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत, सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर संज्ञी जीव उक्त प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। स्त्रीवेद. पुरुषवेद, हास्य, रति, तीन जाति, चार संस्थान, पाँच संहनन, अप्रशस्त विहायोगति और
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org