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साभित्तपरूवणा
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देवस्स तप्पा ०षिसु० उक्क० वट्ट० । उज्जो० ओघं । एवं चेव वेडव्वियमि० । णवरि उज्जोव० सत्तमा पुढवीए मिच्छा० सागा० सव्वविसु० ।
४२१. आहार० - अहारमि० पंचणा० - छंदंसणा ० - असादा० - चदुसंज० - पंचणोक०अप्पसत्थवण्ण०४- उप ०- अथिर- असुभ अजस० पंचंत० उक्क० कस्स० ? अण्ण० सागा ० सव्वसंकिलि० । सादावे' ० देवगदि पंचिंदि ० - वेउच्वि ० - तेजा ० क ० - समचदु० - वेडव्वि०अंगो० -पसत्थवण्ण ०४ - देवाणु ० - अगु० ३ - पसत्थ० -तस०४ - थिरादि६० - णिमि० - तित्थ०उच्चा० उक्क० कस्स ० १ अण्ण० सागा० सव्वविसु० । हस्स-रदि० उक्क० कस्स ० ? अण्ण० सागा० तप्पा ०संकिलि० । देवाउ० उक्क० कस्स० ? अण्ण० सागा० तप्पा०विसु० उक्क० ब० ।
४२२. कम्मइ० पंचणा ० णवदंसणी० - असादा०-मिच्छत्त- सोलसक० - पंचणोक ०तिरिक्खगदि - हुंड० - अप्पसत्थवण्ण०४ - तिरिक्खाणु० उप०- अथिरादिपंच-णीचा ०-पंचंत ० उक्क० कस्स ० ? अण्ण० पंचिदि० सण्णि० चदुर्गादि० मिच्छादि ० सागा० सव्वसं ० | सादा ०पंचिदि ० तेजा ० क ०-समचदु ०--पसत्थ०४ - अगु०३ - पसत्थवि ० -तस०४ - थिरादिछ०ऐशान तकका देव आतपके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। उद्योतका भंग ओघके समान है। इसी प्रकार वैक्रियिक मिश्रकाययोगी जीवों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि उद्योतके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी साकार-जागृत और सर्व विशुद्ध सातवीं पृथिवीका मिध्यादृष्टि नारकी होता है । ४२१. आहारककाययोगी और आहारक मिश्रकाययोगी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, असातावेदनीय, चार संज्वलन, पाँच नोकपाय, अशस्त वर्णचतुष्क, उपघात, अस्थिर, अशुभ, अयशःकीर्ति और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, सर्व संक्लिष्ट और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । सातावेदनीय, देवगति, पञ्च ेन्द्रिय जाति, वैयिक शरीर, तेजस शरीर, कार्मण शरीर, समचतुरस्र संस्थान, वैक्रियिक आङ्गोपाङ्ग, प्रशस्त वर्ण चतुष्क, देवगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुत्रिक, प्रशस्त विहायोगति, त्रसचतुष्क, स्थिर आदि छह, निर्माण, तीर्थङ्कर और उच्चगोत्रके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत, सर्वशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर जीव उक्त प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभाग बन्धका स्वामी है | हास्य और रतिके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार - जागृत, तत्प्रायोग्य संक्लिष्ट और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर जीव हास्य और रतिके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । देवायुके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकारजागृत, तत्प्रायोग्य विशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर जीव देवायुके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है ।
४२२. कार्मणकाययोगी जीवों में पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, पाँच नोकपाय, तिर्यञ्चगति, हुण्ड संस्थान, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, तिर्यचगत्यानुपूर्वी, उपघात, अस्थिर आदि पाँच, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत, सर्वसंक्लिष्ट और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर पंचेन्द्रिय संज्ञी चार गतिका मिध्यादृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । सातावेदनीय. पंचेन्द्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर समचतुरस्त्रसंस्थान, प्रशस्त
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१. ता० प्रतौ श्रदव० [ व ] श्रा० प्रवौ चादावे इति पाठः । २. सा० प्रतौ [ ] दंसणा०, प्रा० प्रतौ छदंसणा ० इति पाठः । ३. ता० प्रतौ तेजा० समचदु० इति पाठः ।
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