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पदणिक्खेवे सामित्तं
क्खण पडिभग्गी] तस्स उक्क० हाणी । तस्सेव से काले उक्क० अवट्ठाणं । वेद०-णामा०गोद० उक० वड्डी कस्स० १ यो उक्क० अणु० बंधमाणो से काले सरीरपज्जत्ति जाहिदि ति तस्स उक्क० वड्डी । उक्क ० हाणी उक० अवद्वाणं णाणा० भंगो। आउ० अपज्जतभंगो | एवं वेव्वियमि० । णवरि आउ० णत्थि । वेउव्वियका० आहार० णिरयभंगो । आहार[ मि० ] सव्वट्ट ०भंगो ।
३१८. कम्मइ० घादि०४ उक्क० वड्डी कस्स० ? यो जहणियादो संकिलेसादो उक्कस्सयं संकिलेसं गदो तदो उक्क० अणु० बंधो तस्स उक्क० वड्डी । उक्क० हाणी कस्स० १ यो उक्क० अणुभागं बंधमाणो सागारक्खरण पडिभग्गो तप्पाओग्गजहण्णए पडदो तस्स उक्क हाणी । उक्क० अवट्ठाणं० कस्स ० १ बादरेइंदियस्स उक्कस्सिया हाणी कादृण अवट्टिदस्स तस्स उक्क० अवट्टाणं । वेद०-णामा०- गोद० उक्क० वड्डी हाणी - सम्मादि० । उक्क० अवद्वाणं बादरेइंदिए हाणी० । [ एवं अणाहार० । ]
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३१६. इत्थवे० घादि०४ णिरयभंगो । वेद०-णामा०- गोद० उक्क० बड्डी कस्स ० ? अण्ण० खवगस्स चरिमे उक्क० अणु० वड्डी तस्स उक्क० वड्डी । उक्क हाणी अडाणं आऊ वि मणुसि० भंगो | एवं णवंसग० । अवगद० घादि०४ उक्क० वड्डी कस्स ० ? अण्ण उवसामयस्स चरिमे अणुभा० * बंधे वट्ट० से काले सवेदो होहिदि ति
भग्न होता है, वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है, तथा उसीके तदनन्तर समय में उत्कृष्ट अवस्थान होता है । वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव तदनन्तर समय में शरीरपर्याप्तिको प्राप्त होगा, वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्टदान और उत्कृष्ट अवस्थानका भंग ज्ञानावरणके समान है । आयु कर्मका भंग अपर्याप्तकोंके समान है । इसी प्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवों में जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनके
कर्मका बन्ध नहीं होता । वैक्रियिककाययोगी और आहारककाययोगी जीवों में सामान्य नारकियों के समान भंग है । आहारकमिश्रकाययोगी जीवों में सर्वार्थसिद्धि के देवोंके समान भंग है ।
३१८. कार्मणकाययोगी जीवोंमें चार घातिकर्मोंकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो जघन्य संक्लेशसे उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त होकर उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है, वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है । उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? जो उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव साकार उपयोगका क्षय होनेसे प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य अनुभागका बन्ध करता है, वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है । उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी कौन है ? जो बादर एकेन्द्रिय जीव उत्कृष्ट हानि करके अवस्थित है, वह उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है । वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मकी उत्कृष्ट वृद्धि और उत्कृष्ट हानिका स्वामी सम्यग्दृष्टि जीव है । उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी हानिवाला बादर एकेन्द्रिय जीब है। इसी प्रकार अनाहारक जीवोंके जानना चाहिए ।
३१६. स्त्रीवेदी जीवोंमें चार घातिकर्मों का भंग नारकियों के समान है । वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन हैं ? जो अन्यतर क्षपक सवेदी अन्तमें उत्कृष्ट अनुभागकी वृद्धि कर रहा है, वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है । उत्कृष्ट हानि, उत्कृष्ट अवस्थान और आयु कर्मका भङ्ग मनुष्यनियोंके समान है। इसी प्रकार नपुंसकवेदी जीवों में जानना चाहिए। अपगतवेदी
१ ता० प्रतौ अवट्टि० इति पाठः । २ ता० प्रतौ अणु० क०, आ० प्रतौ अणुक्क० इति पाठः । १९
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