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पदणिक्खेवे सामित्तं
१४३ पडिदो तस्स उक्क हाणी । तस्सेव से काले उक्क० अवट्टाणं । एवं ओघभंगो कायजोगिकोधादि०४-अचक्खु०-भवसि-आहारग ति।।
३१४. णेरइएसु धादि०४ उक्क० वड्डी ओघो । उक्क० हाणी कस्स० १ उक्कस्सयं अणुभागं बंधमाणो सागारक्खएण पडिभग्गो तप्पाओग्गजहण्णए पडिदो तस्स उक्क० हाणी। तस्सेव से काले उक्क० अवट्ठाणं । वेद०-णामा०-गोद० उक० वड्डी कस्स० ? यो जहणियादो विसोधीदो उक्कस्सयं विसोधिं गदो तप्पाओग्गउक्कस्सयं अणुभागं बंधमाणो' तस्स उक्क० वड्डी। उक्क० हाणी कस्स० ? यो उक्क० अणुभागं बंधमाणो सागारक्खएण पडिभग्गो तप्पाओग्गजहण्णए पडिदो तस्स उक्क० हाणी । तस्सेव से काले उक्क० अवट्ठाणं । आउ० ओघं । एवं सव्वणेरडगाणं सव्वदेवाणं च ।
३१५. तिरिक्खेसु सत्तण्णं क. णिरयभंगो। आउ० उक्क० वड्डी कस्स० ? यो जहणियादो संकिलेसादो उक्क० संकिलेसं गदो तदो उक्क० अणुभागं पबंधो' तस्स उक्क० वड्डी । उक्त हाणी कस्स० ? यो तप्पाओग्गउक्कस्सयं अणुभागं बंधमाणो सागारक्खएण पडिभग्गो तप्पाओग्गजहण्णए पडिदो तस्स उक्क० हाणी। तस्सेव से काले उक्क० अवट्ठाणं । एवं पंचिंदि०३ । पंचिंदि०तिरि०अप० घादि०४ उक्क. वड्डी कस्स० १ यो जहण्णिगादो संकिलेसादो उक्कस्सयं संकिलेसं गदो तस्स उक्कस्सयं अणु
वह उस्कृष्ट हानिका स्वामी है। इसीके तदनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है । इस प्रकार ओघके समान काययोगी, क्रोधादि चार कषायवाले, अचक्षुदर्शनी, भव्य और आहारक जीवोंके जानना चाहिये।
३१४. नारकियों में चार घाति कर्माकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी ओघके समान है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? जो उत्कृष्ट अनुभागका बंध करनेवाला जीव साकार उपयोगका क्षय होने से प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्यका बन्ध करने लगा, वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है । उसीके तदनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है । वेदनीय, नाम और गोत्र कर्मकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है? जो जघन्य विशद्धिसे उत्कृष्ट विशुद्धिको प्राप्त हुआ और उत्कृष्ट अनुभाग बन्ध करने लगा,वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है? जो उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव साकार उपयोगका क्षय होनेसे प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य अनुभागका बन्ध करने लगा,वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। उसीके तदनन्तर समय में उत्कृष्ट अवस्थान होता है। आयकर्मका मन ओघके समान है। इसी प्रकार सब नारकियों और सब देवोंके जानना चाहिये।
३१५. तिर्यश्चोंमें सात कोंका भंग नारकियोंके समान है । प्रायुकर्मकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो जघन्य संक्लेशसे उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त होकर उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है, वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? जो तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव साकार उपयोगका क्षय होनेसे प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य अनुभागका बन्ध
ह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। उसीके तदनन्तर समयमें उस्कृष्ट अवस्थान होता है। इसी प्रकार पंचेन्द्रियतियचत्रिकके जानना चाहिए। पंचेन्द्रियतिर्यश्च अपर्याप्तकोंमें चार घातिकमोंकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है? जो जघन्य संक्लेशसे उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त होकर उत्कृष्ट अनुभागका
ता. प्रतौ बंधो इति पाठः । २ ता. प्रतौ अणुभाग पबंधो पा. प्रतौ अणुभागबंधो इति पारः।
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