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पदणिक्खेवे सामित्तं
१४६ ३२६. वेदगे घादि०४ ओधिभंगो। सेम तेउभंगो। सासणे घादीणं उक्का आणदभंगो। वेद०-णामा०-गोद० आऊ वि तप्पाओग्गविसुद्ध कादव्वं । सम्मामि० धादि०४ उक्क० वड्डी मिच्छत्ताभिमु० । हाणी अवट्ठाणं ओधिभंगो। वेद०-णामा०गोद० उक्क० वड्डी सम्मत्ताभिमुह । हाणी अवट्ठाणं सत्थाणे । असण्णि. पंचिं०तिरि०अपजत्तभंगो । आउ० मदि०भंगो।
३२७. जहण्णपदणिक्खेवे' सामित्तस्स साधणटुं अट्ठपदभृदसमासस्स लक्खणं वत्तइस्सामो। तं जहा-मिच्छादिहिस्स जा अणंतभागफद्दयपरिवड्डी संजदस्स जा अणंतभागफद्दयपरिवड्डी मिच्छादिहिस्स जा अणंतभागफद्दयपरिवड्डी सा अणंतगुणा । एदेण अट्ठपदभूदसमासलक्खणेण:
३२८. जहण्णपदणिक्खेवे सामित्ते पगदं। दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० णाणा०दंस०--अंतरा० जह० वड्डी कस्स० ? अण्ण. उवसामयस्स परिवदमाणयस्स दुसमयसुहुमसंपराइयस्स तस्स जह० वड्डी। जह० हाणी कस्स० ? अण्ण० सुहुमसंपराइयस्स खवगस्स चरिमे अणु० वट्ट० तस्स जह० हाणी। जह० अवठ्ठाणं कस्स० १ अण्ण अप्पमत्त० अखवग-अणुवसामयस्स सव्यविसुद्धस्स अणंतभागे वड्डिदूण अवट्टिदस्स तस्स
३२६. वेदकसम्यग्दृष्टि जीवों में चार घातिकर्मों का भंग अवधिज्ञानी जीवों के समान है। शेष कर्मोंका भंग पीतलेश्यावाले जीवोंके समान है। सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें चार घातिकमौका भंग आनतकल्पके समान है। वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मका तथा. आयुकर्मका भी स्वामित्व तत्प्रायोग्य विशुद्ध जीवके कहना चाहिए । सम्यग्मिश्यादृष्टि जीवोंमें चार घातिकर्मीकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामित्व मिथ्यात्वके अभिमुख हुए जीवके कहना चाहिए । हानि और अवस्थानका भंग अवधिज्ञानी जीवोंके समान है। वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामित्व सम्यक्त्वके अभिमुख हुए जीवके कहना चाहिए। तथा हानि और अवस्थानका स्वामित्व स्वस्थानमें कहना चाहिए। असंज्ञी जीवोंमें पंचेन्द्रिय तियच अपर्याप्तकोंके समान भंग है। आयुकर्मका भंग मत्यज्ञानी जीवोंके समान है।
३२७. जघन्य पदनिक्षेपमें स्वामित्वका साधन करने के लिए अर्थपदभूत समासका लक्षण बतलाते हैं । यथा-मिथ्यादृष्टिके जो अनन्तभाग स्पर्द्धककी वृद्धि होती है, संयतके जो अनन्तभाग स्पर्द्धककी वृद्धि होती है और मिथ्यादृष्टिके जो अनन्तभाग स्पर्द्धककी वृद्धि है होती है । इस अर्थपदभूत समास लक्षणके अनुसार
३२८. जघन्य पदनिक्षेपमें स्वामित्वको प्रकरण है । उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका हैश्रोध और आदेश। ओघसे ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तरायकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो गिरनेवाला अन्यतर उपशामक द्विसमयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिक जीव है,वह जघन्य वृद्धिका स्वामी है। जघन्य हानिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर सूक्ष्मसाम्परायिक क्षपक जीव अन्तिम अनुभागबन्धमें अवस्थित है, वह जघन्यहानिका स्वामी है। जघन्य अवस्थानका स्वामी कौन है?
1ता० प्रती जहण्णं पद इति पाठः । २ ता. प्रतौ अट्ठपदभूदसमास तस्स समसलक्खणं इति पाठः । ३ ता० प्रती अहुपदेणभूद (पदभूदेण) समासलक्खणेण इति पाठः । १ ता. आ. प्रत्योः णाणा. दंस. भवत्त० इति पाठः ।
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