________________
पदणिक्खेवे सामित्तं ३३४. वेउब्वियका० णिरयोघं । वेउब्वियमि० घादि०४-वेद०-णाम० ओरालिय मिस्सभंगो। गोद० सत्तमाए पुढवीए मिच्छादि० तप्पाओग्गजहण्णिगादो' विसोधीदो पडिभग्गो तप्पाओग्गजहण्णए पडिदो तस्स जहणिया वड्डी। तस्सेव से काले जह० अवठ्ठाणं । जह• हाणी कस्स० ? अण्ण. से काले सरीरपजत्ती गाहिदि त्ति । आहार० सवढ० भंगो । णवरि पमत्तो ति भाणिदव्वं । आहारमि० ओरालियमिस्समंगो। कम्मइग० घादि०४ जह० वड्डी कस्स० ? अण्ण० सम्मादि० अणंतभागेण वड्डी हाणी अवट्ठा० । एइंदिय० अणंतभागेण वड्डीए वा हाणीए वा अवविदस्स । गोद० सत्तमाए० मिच्छा० जह० वड्डी हाणी अवट्ठाणं। एइंदि० वेद०-णाम० वड्डी हाणी ओघं । अवट्ठाणं एइंदियस्स।
३३५. इत्थिवेदे धादि०४ जह० वड्डी कस्स० ? अण्ण. उवसाम० परिवद० दुसमयबंधगस्स जह० वड्डी। जह० हाणी कस्स० १ अण्ण० खवग० चरिमे अणु०
३३४. वैक्रियिककाययोगी जीवोंमें सामान्य नारकियोंके समान भंग है। वैक्रियिकमिश्रकाय. योगी जीवोंमें चार घातिकर्म, वेदनीय और नामकर्मका भंग औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंके समान है। गोत्रकर्मकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है? जो सातवीं पृथिवीका मिथ्यादृष्टि नारकी तत्प्रायोग्य जघन्य विशुद्धिसे प्रतिभन्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य अनुभाग वन्ध कर रहा है,वह जघन्य वृद्धिका स्वामी है । उसीके तदनन्तर समयमें जघन्य अवस्थान होता है। जघन्य हानिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर जीव तदनन्तर समयमें शरीर पर्याप्तिको प्राप्त होगा, वह जघन्य हानिका म्वामी है । आहारककाययोगी जीवों में सर्वार्थसिद्धिके देवोंके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि इनमें प्रमत्तसंयत जीवको स्वामी कहना चाहिए। आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें औदारिकमिश्रकाययोगी जीवों के समान भंग है। कार्मणकाययोगी जीवोंमें चार घातिकर्मोंकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर सम्यग्दृष्टि जीव अनन्त भागवृद्धिको प्राप्त होता है.वह जघन्य वृद्धिका स्वामी है और जो सम्यग्दृष्टि जीव अनन्तभागहानिको प्राप्त होता है वह जघन्यहानिका स्वामी है, तथा इनमें से किसी एकके अवस्थान होता है। अथवा जो एकेन्द्रिय जीव अनन्तभागवृद्धिको प्राप्त होता है वह जघन्यवृद्धिका स्वामी है, जो एकेन्द्रिय जीव अनन्तभागहानिको प्राप्त होता है वह जघन्य हानिका स्वामी है और इनमेंसे किसी एकके जघन्य अवस्थान होता है। गोत्रकमकी जघन्यवृद्धिका स्वामी कौन है? जो मिथ्यादृष्टि साती पृथिवीका नारकी अनन्तभागवृद्धिको प्राप्त होता है वह जघन्य वृद्धिका स्वामी है, जो अनन्तभागहानिको प्राप्त होता है वह जघन्य हानिका स्वामी है और इनमें से किसी एकके जघन्य अवस्थान होता है। अथवा जो एकेन्द्रिय अनन्तभाग वृद्धिको प्राप्त होता है वह जघन्यवृद्धिका स्वामी है, जो अनन्तभाग हानिको प्राप्त होता है वह जघन्य हानिका स्वामी है और इनमेंसे किसी एकके जघन्य अवस्थान होता है। वेदनीय और नामकर्मके जघन्य वृद्धि और हानिका स्वामित्व ओघके समान है। जघन्य अवस्थानका स्वामी एकेन्द्रिय जीव है।
३३५. स्त्रीवेदी जीवोंमें चार घातिकर्मोकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर गिरने. वाला उपशामक द्विसमयका बन्ध करनेवाला है वह जवन्य वृद्धिका स्वामी है। जघन्य हानिका स्वामी कौन है जो अन्यतर क्षपक जीव अन्तिम अनुभागवन्धमें अवस्थित है, वह जघन्य
१ ता. प्रतौ-जहण्णिगो (ण्णगा) दो इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org