________________
महाबंधे अणुभागबंधाहियारे
३५२. सुक्काए खड्ग० मणुसि ०भंगो । वेदगे गोद० ओधिभंगो । सेसं णिरयभंगो । सम्मामि० गोद० वेद० भंगो । सेसाणं णिरयभंगो। सेसाणं सव्वेसिं पढमपुढविभंगो । एवं अपबहुगं समत्तं ।
एवं पदणिक्खेवो' समत्तो ।
१६०
३२. शुक्ललेश्या और क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें मनुष्यिनियों के समान भंग है । वेदकसम्यग्दृष्टि जीवों में गोत्रकर्मका भंग अवधिज्ञानी जीवोंके समान है। शेष कर्मोंका भंग नारकियों के समान है | सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों में गोत्रकर्मका भंग वेदकसम्यग्दृष्टि जीवों के समान है। शेष कर्मों का भंग नारकियों के समान है। शेष सत्र मार्गणाओंमें पहली पृथिवीके समान भंग है ।
इस प्रकार अल्पबहुत्व समाप्त हुआ ।
इस प्रकार पदनिक्षेप समाप्त हुआ ।
भ० प्रतौ पडिणिक्खेवो इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org