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पदणिक्खेवो ३०९. एत्तो पदणिक्खेओ त्ति तत्थ इमाणि तिष्णि अणियोगद्दाराणि--समुक्त्तिणा सामित्तं अप्पाबहुगे ति।
समुकित्तणा ३१०. समुक्त्तिणा दुवि०--जह० उक्क० । उक० पगदं । दुवि०-ओघे० आदे०। ओघे० अढण्णं क० अस्थि उक्क० वड्डी उक्क० हाणी उक्क० अवठ्ठाणं । एवं याव अणाहारग ति णेदव्वं । णवरि अवगद० मुहुमसंप० सत्तण्णं क० छण्णं क. अस्थि उक० वड्डी उक्क० हाणी । अवट्ठाणं णत्थि ।
३११. जह० पगदं । दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० अट्ठण्णं क. अस्थि जह० वड्डी जह० हाणी जह० अवट्ठाणं । एवं याव अणाहारग त्ति णेदव्वं । अवगद०.सुहुम. संप० सत्तण्णं क. छण्णं क० अत्थि जह० वड्डी जह० हाणी । अवट्ठाणं णस्थि ।
सामित्तं ३१२. सामित्तं दुवि०--जह० उक्क० । उक० पगदं। दुवि०--ओषे० आदे० । ओघे० णाणा० उक्क० वड्डी कस्स होदि ? यो चदुट्टाणिययवमज्झस्स उवरि अंतो
पदनिक्षेप ३०६. इसके आगे पदनिक्षेपका प्रकरण है। उसके ये तीन अनुयोगद्वार होते हैं-समु. कीर्तना, स्वामित्व और अल्पबहुत्व ।
समुत्कीर्तना ३१०. समुत्कीर्तना दो प्रकारकी है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे आठों कर्मोंकी उत्कृष्ट वृद्धि, उत्कृष्ट हानि और उत्कृष्ट अवस्थान है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि अपगतवेदी और सूक्ष्मसाम्परायिकसंयत जीवोंमें क्रमसे सात कर्मोकी और छह कर्मोंकी उत्कृष्ट वृद्धि और उत्कृष्ट हानि है । अवस्थान नहीं है।
३११. जघन्यका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे आठों कोंकी जघन्य वृद्धि, जघन्य हानि और जघन्य अवस्थान है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिये। अपगतवेदी और सूक्ष्मसाम्परायिकसंयत जीवों में क्रमसे सात कर्मोकी और छह कर्मोंकी जघन्य वृद्धि और जघन्य हानि है । अवस्थान नहीं है।
स्वामित्व ३१२. स्वामित्व दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारक है-ओघ और आदेश। ओघसे ज्ञानावरणकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है?
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