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महाबंधे अणुभागबंधाहियारे तस्स उक्क० वड्डी । उक्क० हाणी कस्स० १ अण्ण० खवग० [अणिय० पढमादो अणुभागबंधादो] विदिए अणु बंधे वट्ट० तस्स उक० हाणी। वेद०णामा०-गोद० उक्क० वड्डी हाणी मणुसि भंगो । अवट्ठाणं णत्थि। एवं सुहमसंप० ।
३२०. मदि० सुद. धादि०४ ओघं । वेद०-णामा०-गोद० उक्क० वड्डी कस्स० ? अण्ण० मणुसस्स संजमाभिमुहस्स सविसुद्धस्स चरिमे उक्क० अणु० वट्ट० तस्स उक० बड्डी । उक्क० हाणी कस्स० ? अण्ण. संजमादो परिवदमाणस्स दुसमयमिच्छा० तस्स उक्क० हाणी । उक० अवठ्ठाणं कस्स० ? यो तपाओग्गउक्कस्सिगादो विसोधीदो पडिभग्गो तप्पाओग्गजहण्णए पडिदो तस्स उक्क० अवट्ठाणं । आउ० तिरिक्खोघं । एवं मिच्छा० । विभंगे धादि०४ णिरयभंगो । सेसं मदिभंगो।।
३२१. आमि०-सुद०-ओधि० घादि०४ उक्क. वड्डी कस्स० १ अण्ण० सागा० जो णियमा उक्कस्ससंकिले० मिच्छत्ताभिमुहस्स चरिमे उक्क० अणु० वट्ट० तस्स उक्क० वड्डी । उक्क० हाणी कस्स० १ अण्ण० यो तप्पा० उक० अणु० बंधमाणो सागारक्खएण पडिभग्गो तप्पाओग्गजह० पडिदो तस्स उक्क० हाणी । तस्सेव से काले उक० अवट्ठाणं । सेसं ओघमंगो। एवं ओधिदंस०-सम्मादि० खइग०-उवसम० । जीवों में चार घातिकर्मोंकी उत्कृष्ट वृद्धि का स्वामी कौन है ? जो अन्यतर उपशामक जीव अन्तिम अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धमें विद्यमान है और तदनन्तर समयमें सवेदी होगा, वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है । उस्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर क्षपक पहिले अनुभागबंधसे दूसरे अनुभागबन्धमें अवस्थित है,वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है । वेदनीय, नाम और गोत्र कर्मकी उत्कृष्टवृद्धि और उत्कृष्ट हानिका भंग मनुष्यिनियोंके समान है । इनके अवस्थानपद नहीं होता। इसी प्रकार सूक्ष्मसाम्परायिकसंयत जीवोंके जानना चाहिए।
३२०.मत्यज्ञानी और ताज्ञानी जीवोंमें चार घातिकर्मोका भंग ओघके समान है। वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? संयमके अभिमुख और सर्वविशुद्ध जो अन्यतर मनुष्य अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित है, वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है । उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? संयमसे गिरनेवाला जो अन्यतर मनुष्य द्विसमयवर्ती मिध्यादृष्टि है, वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है । उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी कौन है ? ओ तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट विशुद्धिसे मुड़कर तत्प्रायोग्य जघन्य विशुद्धिको प्राप्त हुआ है,वह उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है। आयुकर्मका भंग सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है। इसी प्रकार मिथ्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिए। विभंगज्ञानी जीवोंमें चार घातिकर्मोंका भंग सामान्य नारकियों के समान है। शेष कर्मोंका भंग मत्यज्ञानी जीवोंके समान है।
३२१. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें चार घातिकर्मोंकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो साकार उपयोगवाला और उत्कृष्ट संक्लेशसे युक्त अन्यतर जीव मिथ्यात्वके उन्मुख होकर अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करता है,वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? जो तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर जीव साकार उपयोगका क्षय होनेसे प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य अनुभागका बन्ध करता है, वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है और उसीके तदनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है। शेष भंग ओघके समान है। इसी प्रकार अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि और उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीवोंमें चार
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