________________
भुजगारबंधे णाणाजीवेहि भंगविचयाणुगमो
१३१ पम्म० सहस्सारभंगो । सुक्काए सत्तण्णं क० अवढि० जह० एग०, उक्क० तेत्तीसं० सादि० । अवत्त० णत्थि अंतरं। सेसं देवोघं ।
२८३. उवसम० सत्तण्णं क. तिण्णिप० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवत्त० णात्थ अंतरं । सासणे आउ० अवत्त० णत्थि अंतरं । सेसपदा० जह० एग०, उक्क० अंतो० । सम्मामि० सत्तण्णं क० सासणभंगो।
२८४. असण्णी० सत्तण्णं क० आउ० अवढि० तिरिक्खोघं । आउ० भुज-अप्प. जह० एग०, अवत्त० ज० अंतो०, उक्क० पुवकोडी सादि० । आहारएसु सत्तण्णं क० भुज० अप्पद० ओघं । अवढि० जह० एग०, अवत्त० जह० अंतो०, उक० अंगुल. असंखें । आउ० अवढि णाणाभंगो। सेसपदा ओघं ।
एवं अंतरं समत्तं।
णाणाजी वेहि भंगविचयाणुगमो २८५. णाणाजीवेहि भंगविचयाणुगमेण दुवि०--ओघे० आदे० । ओघे० सत्तण्णं क. भुज०-अप्प अवट्ठि० णियमा अस्थि । सिया एदे य अवत्तगे य । सिया एदे य अवत्तगा य । एवं ओघभंगो कायजोगि-ओरालि. लोभमोह, अवत्त० अचक्खु०. पदोंका भंग ओघके समान है। आयुकर्मका भंग नारकियोंके समान है। पीतलेश्यावाले जीवोंमें सौधर्म कल्पके समान भंग है। पद्मलेश्यावाले जीवोंमें सहस्त्रारकल्पके समान भंग है। शुक्ललेश्यावाले जीवोंमें सात कर्मों के अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर है। अवक्तव्यपदका अन्तरकाल नहीं है। शेष भंग सामान्य देवोंके समान है।
२८३. उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें सात कर्मों के तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। अवक्तव्यपदका अन्तरकाल नहीं है। सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें
आयुकर्मके अवक्तव्य पदका अन्तरकाल नहीं है। शेष पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें सात कर्मोंका भंग सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंके समान है।
२८४. असंही . 'वोंमें सात कर्म और आयुकर्मके अवस्थित पदका भंग सामान्य तिर्यश्चोंके समान है। आयकर्मके भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समय है. अवा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और इनका उत्कृष्ट अन्तर साधिक एक पूर्वकोटि है। आहारक जीवोंमें सात कोंके भुजगार और अल्पतरपदका भंग ओघके समान है। अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है, प्रवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और इनका उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। आयुकर्मके अवस्थितपदका भंग ज्ञानावरणके समान है। तथा शेष पदोंका भंग ओघके समान है।
इस प्रकार अन्तर समाप्त हुआ।
नाना जीवोंकी अपेक्षा भङ्गविचयानुगम २८५. नाना जीवोंकी अपेक्षा भङ्गविचयानुगमसे निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे सात कर्मों के भुजगार, अल्पतर और अवस्थितपदके बन्धक जीव नियमसे हैं। कदाचित इन पदोंके बन्धक जीव हैं और अवक्तव्य पदका बन्धक एक जीव है। कदाचित् इन पदोंके बन्धक जीव हैं और अवक्तव्य पदके बन्धक नाना जीव हैं। इसी प्रकार अोधके समान
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org