Book Title: Mahabandho Part 4
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 152
________________ भुजगारबंधे अंतराणुगमो १२७ सेसाणं पि सत्तण्णं क० अवत्तव्वगा वज ओघं। गवरि कम्मह० अणाहार० भुज-अप्प० जह० एग०, उक्क० बे सम० । अवट्टि० जह० ए०, उक्क० तिण्णि सम० । अवगद० भुज०-अप्पद० जह एग०, उक० अंतो० । अवत्त० एग०एवं सुहुमसंप० अवत्तव्वं वन्ज । अंतराणुगमो २७३. अंतराणुगमेण दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० सत्तण्णं. क. भुज० अप्प० बंधंतरं केव० १ जह० एग०, उक्क० अंतो० ॥ अवढि० जह० एग०, उक्क० असंखेंजा लोगा। अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० अद्धपोग्गल । आउ० भुज-अप्प० जह एग०, अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० तेत्तीसं' साग० सादिरे । अवढि० जह० एग०, उक्क० असंखेंजा लोगा। [एवं अचक्खु० भवसि० ।] २७४. णिरएसु सत्तणं क० भुज०-अप्प० ओघ । अवट्टि० जह० एग०, उक्क० तैंतीसं साग० देसू० । आउ० तिण्णि प० जह० एग०, अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० छम्मासं देसू० । एवं सव्वणिरएसु अप्पप्पणो हिदी कादवा। चाहिये । इतनी विशेषता है कि कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवोंमें भुजगार और अल्पतर पदका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है। अवस्थित पदका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तीन समय है। अपगतवेदी जीवोंमें भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । अवक्तव्य पदका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। इसी प्रकार सूक्ष्मसाम्परायसंयत जीवोंमें अवक्तव्यपदको छोड़कर काल जानना चाहिये। इस प्रकार कालानुगम समाप्त हु।। अन्तरानुगम २७३. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे सात कर्मों के भजगार और अल्पतर बन्धका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोक प्रमाण है। अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अर्धपुद्गल परिवर्तनकाल प्रमाण है। आयुकर्मके भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और इनका उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर है। अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है। इसी प्रकार अचक्षुदर्शनी और भव्य जीवों के जानना चाहिए। २७४. नारकियों में सात कर्मों के भुजगार और अल्पतर पदका भङ्ग ओघके समान है। अव. स्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागा है। आयुकर्म के तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और इनका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम छह महीना है । इसी प्रकार सव नारकियों में अपनी-अपनी स्थितिका विचारकर अन्तरकाल कहना चाहिये। १. ता. प्रती अंतो० तेत्तीसं इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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