________________
महाधे अणुभागबंधाहियारे
२७५. तिरिक्खेसु सत्तणं क० ओघं० । आउ० अवट्ठि० श्रोधं । सेसाणं पदाणं जह० ओघं, उक्क • तिष्णि पलिदो० सादि० । पंचिदियतिरि०३ सत्तण्णं क० अवट्टिο जद्द ० एग०, उक्क० काय ट्ठिदी । आउ० अवट्ठि० णाणा० भंगो । सेसं तिरिक्खोषं । पंचि०तिरि० अप० सत्तण्णं क० भुज० अप्प० अवडि० जह० एग०, उक्क० अंतो० । आउ • तिण्णि पदा० णाणा० भंगो । अवत्त ० जह० उक्क • अंतो० । एवं सव्वपञ्जत्ताणं सुदुमपञ्जत्ताणं च ।
१२८
२७६. मणुस ०३ सत्तण्णं क० अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० पुव्वको डिपुध० । सेसं पंचिदियतिरिक्खभंगो । देवाणं णिरयभंगो । णवरि अप्पप्पणो हिदी कादव्वा ।
२७७. एइंदिए सत्तण्णं क० ओघं । आउ० अवट्ठि • ओघं० । सेसाणं जह० ए० अंतो०, उक० बावीसं वाससह० सादि० । बादरे अट्टण्णं क० अवट्ठि० उक्क० अंगुल • असं' । पञ्जते संखेजाणि वाससह । सुहुमे असंखेजा लोगा । विग लिंदिय०२ श्रणं क० अवदि० जह० एग०, उक्क० संखेज्जाणि वासस६० । सेसपदा ओघं । वरि आउ० उक्क० अप्पप्पणो पगदिअंतरं कादव्वं । पंचकायाणं एइंदियभंगा दो साधेदव्वो ।
२७५. तिर्यञ्चोंमें सात कर्मोंका अन्तर काल ओघके समान है। आयु कम के अवस्थित पदका अन्तरकाल ओघ के समान है । शेष पदोंका जघन्य अन्तरकाल ओघ के समान है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तीन पल्य है । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिक में सात कर्मों के अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कार्यस्थितिप्रमाण है । आयुकर्म के अवस्थित पदका अन्तर ज्ञानावरण के समान है । शेष भङ्ग सामान्य तिर्यों के समान है । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च पर्याप्तकों में सात कर्मो के भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय हैं और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । आयुकर्मके तीन पदोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । अवक्तव्य पदका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । इसी प्रकार सब अपर्याप्त, और सूक्ष्म पर्याप्त जीवों के जानना चाहिये । २७६. मनुष्यत्रिक में सात कर्मों के अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरपूर्वकोटि पृथक्त्व प्रमाण है । शेष भङ्ग पञ्चेन्द्रियतिर्यों के समान है । देवों में नारकियों के समान भङ्ग । इतनी विशेषता है कि अपनी अपनी स्थिति कहनी चाहिये ।
२७. एकेन्द्रियों में सात कर्मोंका भङ्ग ओघके समान है । आयुकर्मके अवस्थित पदका भङ्ग ओघ के समान है। शेष पदोंका अर्थात् भुजगार और अल्पतरका जघन्य अन्तर एक समय और अवक्तव्यका अन्तर्मुहूर्त है तथा उत्कृष्ट अन्तर साधिक बाईस हज र वर्ष है । बादर एकेन्द्रियों में आठ कर्मोंके अवस्थित पदका उत्कृष्ट अन्तर अङ्गुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । बादर एकेन्द्रिय पर्यातकों में संख्यात हजार वर्ष है। सूक्ष्म एकेन्द्रियों में असंख्यात लोक है । विकलेन्द्रिय और विकले. न्द्रियपर्याप्तकों में आठ कर्मों के अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय हैं और उत्कृष्ट अन्तर संख्यात हजार वर्ष है। शेष पदोंका अन्तर ओघ के समान है। इतनी विशेषता है कि आयुकर्म में उत्कृष्ट अन्तर अपने अपने प्रकृतिबन्ध के अन्तरकाल के समान कहना चाहिये । पाँच स्थावरकायिक
में एकेन्द्रियों के भङ्ग के अनुसार साध लेना चाहिये ।
१ ता० भा० प्रत्यो: अंगुल सं० इति पाठ: । २. ता० प्रतौ भंगो ( गा ) दो सावे ( धे ) दव्वो इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org